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Kavita Kosh से
भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज।
कई बार जिसको भेजा है सजा-सजाकर नूतन साज॥
लो आओ, भुनदण्ड भुजदण्ड उठाओ, इस राखी में बँधवाओ।
भरत-भूमि की रनभूमी को एकबार फिर दिखलाओ॥
वीर चरित्र राजपूतों का पढ़ती हूँ मैं राजस्थान।