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"तपस्या / रचना उनियाल" के अवतरणों में अंतर

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23:06, 31 अगस्त 2021 के समय का अवतरण

जीवन के हर चरण में, तप फल देता गाय।
जैसी होगी साधना, पुरस्कार वह पाय॥
पुरस्कार वह पाय, तपस्या बड़ी निराली।
चखता प्राणी स्वाद, लगे है मधु की प्याली॥
रचना रचती जाय, बने श्रम तप का मधुवन।
तापित जितनी देह, सुगंधित करती जीवन॥

मानव मन यदि मान ले, तप से है अभिमान।
ज्ञान धारणा भान में, रम जातें हैं प्रान॥
रम जाते हैं प्रान, लक्ष्य को प्राणी पाता।
उठता-गिरता बार, तपस्वी वह बन जाता॥
रचना रचती जाय, जीत लो आलस तांडव।
बाधाओं को काट, श्रेष्ठ है कहता मानव॥

ऋषियों की आराधना, दृढ़ इच्छा का ज्ञान।
ग्रंथ-ग्रंथ में लिख गये, प्राणी सभी सुजान॥
प्राणी सभी सुजान, अनूठी जीवन लीला।
ठाना मन जो बार, गये चढ़ विजयी टीला॥
रचना रचती जाय, तपस्या उनकी गुनियों।
भारत भू के लाल, नमन करते हम ऋषियों॥