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"धूमिल के लिए / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
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समय की क़ातिलाना मार कह नहीं पाए | समय की क़ातिलाना मार कह नहीं पाए | ||
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यहाँ झरने लगे हैं फूल अपने वक़्त से पहले | यहाँ झरने लगे हैं फूल अपने वक़्त से पहले | ||
मिली है ज़िन्दगी जितनी उसी में दास्ताँ कहले ! | मिली है ज़िन्दगी जितनी उसी में दास्ताँ कहले ! | ||
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14:29, 10 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण
यहाँ झरने लगे हैं फूल अपने वक़्त से पहले
मिली है ज़िन्दगी जितनी उसी में दास्ताँ कहले !
पता कुछ भी नहीं है, इस घुटन के दौर में प्यारे !
तनावों की जकड़बन्दी, किसे, किस ठौर दे मारे
सुरंगें बन्द हैं – सारी उमर परकैंच है पगले !
मिली है ज़िन्दगी जितनी उसी में दास्ताँ कहले
यहाँ झरने लगे हैं फूल अपने वक़्त से पहले !
हमारे साथ के, चालीस तक भी रह नहीं पाए
समय की क़ातिलाना मार कह नहीं पाए
मिले जो सांस कहने को उसे अच्छी तरह गह ले !
यहाँ झरने लगे हैं फूल अपने वक़्त से पहले
मिली है ज़िन्दगी जितनी उसी में दास्ताँ कहले !