भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तीन मुक्तक / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:28, 20 सितम्बर 2021 का अवतरण
1.
ये अदब का सफ़र है न कम कीजिए,
फ़नपरस्तों पर थोड़ा रहम कीजिए ।
शब्द ठण्डा अगर हो गया है कहीं,
वक़्त की आग देकर गरम कीजिए ।।
2.
आग जिसने बचाई सफ़र के लिए
उसने कुर्बानियाँ दीं डगर के लिए
मुश्किलों को मशक़्क़त से पिघला दिया
रास्ता हो गया विश्व भर के लिए ।।
3.
जब अन्धेरों के ग़म सताते हैं
सिरफिरे रोशनी उगाते हैं
ये चिराग़ों से पूछिए, यारो !
किस तरह जिस्म को जलाते हैं ।।