भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क़लम का गीत / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |अनुवादक= |संग्रह=दरिया...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:03, 20 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण
क़लम में आग है तो ज़िन्दगी है ।
क़लम बेदाग है तो ज़िन्दगी है ।।
कहाँ हैं शब्द के अँगार उनमें
क़लम जिनकी ख़रीदी जा चुकी है
लिखेंगे क्या ? गुनाहों की कहानी
जिन्हें मोटी रक़म हथिया चुकी है
तपस्या त्याग है तो ज़िन्दगी है ।
क़लम बेदाग है तो ज़िन्दगी है ।।
क़लम बिकती नहीं है सिर्फ़ उसकी
जुड़ा है जो ज़मीं से, आदमी से
उसी ने चेतना को नोक दी है
दुखी है जो समय की त्रासदी से
रगों में राग है तो ज़िन्दगी है ।
क़लम बेदाग है तो ज़िन्दगी है ।।