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"हार नहीं मानी / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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10:10, 20 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण

पस्त हुआ, ध्वस्त हुआ,
         हार नहीं मानी ।

जूझा हूँ — मौसम से
कुरसी के बाज़ से
माँगे दो फूल नहीं
दम्भी ऋतुराज से

पतझड़ में जीया —
देवदारू स्वाभिमानी ।

कितना कुछ टूटा है,
छूटा है राह में
आएगा जो भी, वह
झाँकेगा थाह में

मुझ में ही पाएगा
दीन और दानी ।