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"तेरा मिलन / हरदीप कौर सन्धु" के अवतरणों में अंतर

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अब कहाँ से लाऊँ
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हौले -हौले ही
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यूँ  फ़ाहे रख
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खुद ही हैं भरने
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तेरे दिल  के
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अकथ औ असह्य
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गहरे  दर्द- ज़ख्म !
 
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23:38, 27 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण

तेरा मिलन
सुना जाता है मुझे
हर पल ही
अनकहा -सा दर्द
बहता रहा
जो तेरी अँखियों से
निचौड़ी गई
अधूरे अरमान
कठिन राह
अब कहाँ से लाऊँ
पीर खींचती
कोई जादुई दवा
धीरे -धीरे से
तेरे खुले ज़ख्मों पे
रखने को मैं
उठी बिरहा -हूक
बेनूर हुई
लबों पे आ लौटती
काँटों चुभती
तीखी -सी टीस ने
हौले -हौले ही
समय की तल पे
यूँ फ़ाहे रख
खुद ही हैं भरने
तेरे दिल के
अकथ औ असह्य
गहरे दर्द- ज़ख्म !