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+ | तेरे खुले ज़ख्मों पे | ||
+ | रखने को मैं | ||
+ | उठी बिरहा -हूक | ||
+ | बेनूर हुई | ||
+ | लबों पे आ लौटती | ||
+ | काँटों चुभती | ||
+ | तीखी -सी टीस ने | ||
+ | हौले -हौले ही | ||
+ | समय की तल पे | ||
+ | यूँ फ़ाहे रख | ||
+ | खुद ही हैं भरने | ||
+ | तेरे दिल के | ||
+ | अकथ औ असह्य | ||
+ | गहरे दर्द- ज़ख्म ! | ||
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23:38, 27 सितम्बर 2021 के समय का अवतरण
तेरा मिलन
सुना जाता है मुझे
हर पल ही
अनकहा -सा दर्द
बहता रहा
जो तेरी अँखियों से
निचौड़ी गई
अधूरे अरमान
कठिन राह
अब कहाँ से लाऊँ
पीर खींचती
कोई जादुई दवा
धीरे -धीरे से
तेरे खुले ज़ख्मों पे
रखने को मैं
उठी बिरहा -हूक
बेनूर हुई
लबों पे आ लौटती
काँटों चुभती
तीखी -सी टीस ने
हौले -हौले ही
समय की तल पे
यूँ फ़ाहे रख
खुद ही हैं भरने
तेरे दिल के
अकथ औ असह्य
गहरे दर्द- ज़ख्म !