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"आज शाम है बहुत उदास / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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थकी-थकी सी मेरी साँसें
कितना निष्प्रभ, कितना क्लांत <br><br>
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ऐसा लगता अवरोधों से<br>
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यह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त <br><br>
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उतर रहा तम का अम्बार ।  
  
क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना?<br>
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मेरे मन में व्यथा अपार<br>
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औ समेटता निज में सब कुछ<br>
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सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,<br>
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जोकि आज था तोड़ रहा वह
आज शाम है बहुत उदास <br><br>
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आज शाम है बहुत उदास ।  
 
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आज शाम है बहुत उदास ।<br><br>
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03:56, 7 अक्टूबर 2021 के समय का अवतरण

आज शाम है बहुत उदास
केवल मैं हूँ अपने पास ।

दूर कहीं पर हास-विलास
दूर कहीं उत्सव-उल्लास
दूर छिटक कर कहीं खो गया
मेरा चिर-संचित विश्वास ।

कुछ भूला सा और भ्रमा सा
केवल मैं हूँ अपने पास
एक धुन्ध में कुछ सहमी सी
आज शाम है बहुत उदास ।

एकाकीपन का एकान्त
कितना निष्प्रभ, कितना क्लान्त ।

थकी-थकी सी मेरी साँसें
पवन घुटन से भरा अशान्त,
ऐसा लगता अवरोधों से
यह अस्तित्व स्वयं आक्रान्त ।

अंधकार में खोया-खोया
एकाकीपन का एकान्त
मेरे आगे जो कुछ भी वह
कितना निष्प्रभ, कितना क्लान्त ।

उतर रहा तम का अम्बार
मेरे मन में व्यथा अपार ।

आदि-अन्त की सीमाओं में
काल अवधि का यह विस्तार
क्या कारण? क्या कार्य यहाँ पर ?
एक प्रश्न मैं हूँ साकार ।

क्यों बनना? क्यों बनकर मिटना ?
मेरे मन में व्यथा अपार
औ समेटता निज में सब कुछ
उतर रहा तम का अम्बार ।

सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
आज शाम है बहुत उदास ।

जोकि आज था तोड़ रहा वह
बुझी-बुझी सी अन्तिम साँस
और अनिश्चित कल में ही है
मेरी आस्था, मेरी आस ।

जीवन रेंग रहा है लेकर
सौ-सौ संशय, सौ-सौ त्रास,
और डूबती हुई अमा में
आज शाम है बहुत उदास ।