भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हेमलेट / बरीस पास्तेरनाक / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बरीस पास्तेरनाक |अनुवादक=रमेश कौ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
मैं आ गया हूँ
 
मैं आ गया हूँ
 
मंच पर अब
 
मंच पर अब
 +
        द्वार के सानिध्य में होकर खड़ा
 +
        मैं कर रहा कोशिश समझने की
 +
                        दूर की उस गूँज को
 +
                    क्या भला होकर रहेगा
 +
                                  ज़िन्दगी में
  
 +
रात की छाया असित
 +
जो सहस्त्रों नाट्य-शाला पार कर आई
 +
हो गई अब स्वयं मुझ पर केन्द्रित
 +
 +
ऐ पिता
 +
यदि हो सके सम्भव कहीं तो
 +
मेरे हाथ से विष-पात्र ले लो
 +
            है नहीं इंकार मुझको
 +
आपकी जो भी सुनिश्चित योजना
 +
खेल खेलूँगा वही
 +
              जो भी मिलेगी भूमिका
 +
 +
किन्तु यह तो दूसरा ही खेल है
 +
                        माफ़ कर दो
 +
        इसलिए इस बार मुझको
 +
पूर्व निर्धारित हुए हैं दृश्य सारे
 +
                            अन्त भी
 +
 +
मैं अकेला
 +
डूबती पाखण्ड में हैं
 +
                          वस्तु सब
 +
        ज़िन्दगी का पार करना
 +
                        है नहीं ऐसा
 +
                कि जैसे खेत का
 +
 +
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक'''
 
</poem>
 
</poem>

19:14, 8 अक्टूबर 2021 के समय का अवतरण

शान्त हो गया
कोलाहल सब
मैं आ गया हूँ
मंच पर अब
         द्वार के सानिध्य में होकर खड़ा
         मैं कर रहा कोशिश समझने की
                         दूर की उस गूँज को
                     क्या भला होकर रहेगा
                                   ज़िन्दगी में

रात की छाया असित
जो सहस्त्रों नाट्य-शाला पार कर आई
हो गई अब स्वयं मुझ पर केन्द्रित

ऐ पिता
यदि हो सके सम्भव कहीं तो
मेरे हाथ से विष-पात्र ले लो
            है नहीं इंकार मुझको
आपकी जो भी सुनिश्चित योजना
खेल खेलूँगा वही
              जो भी मिलेगी भूमिका

किन्तु यह तो दूसरा ही खेल है
                        माफ़ कर दो
        इसलिए इस बार मुझको
 पूर्व निर्धारित हुए हैं दृश्य सारे
                            अन्त भी

मैं अकेला
डूबती पाखण्ड में हैं
                          वस्तु सब
        ज़िन्दगी का पार करना
                        है नहीं ऐसा
                 कि जैसे खेत का

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक