भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उतराई / यानिस रित्सोस / गिरधर राठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यानिस रित्सोस |अनुवादक=गिरधर राठ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
<poem> | <poem> | ||
बहरहाल, अब रंगों की तादाद कम हो गई है, वह बोला, | बहरहाल, अब रंगों की तादाद कम हो गई है, वह बोला, | ||
− | बची-खुची खेतों की हरियाली यह, यही काफ़ी है मेरे | + | बची-खुची खेतों की हरियाली यह, यही काफ़ी है मेरे लिए। |
और फिर समय के साथ चीज़ें घटती ही हैं । | और फिर समय के साथ चीज़ें घटती ही हैं । | ||
चीज़ें सिकुड़ जाती हैं शायद, और फिर विलय । | चीज़ें सिकुड़ जाती हैं शायद, और फिर विलय । |
04:05, 13 अक्टूबर 2021 के समय का अवतरण
बहरहाल, अब रंगों की तादाद कम हो गई है, वह बोला,
बची-खुची खेतों की हरियाली यह, यही काफ़ी है मेरे लिए।
और फिर समय के साथ चीज़ें घटती ही हैं ।
चीज़ें सिकुड़ जाती हैं शायद, और फिर विलय ।
पत्ते की हल्की-सी थिरकन —
और एक नया द्वार खुल जाता है,
सहन में घुसकर मैं चलता चला जाता हूँ दूसरे छोर तक —
दोनों ओर कतार में खिड़कियाँ और बुत ।
खिड़कियाँ सफ़ेद, बुत लाल हैं —
साफ़ नज़र आते हैं मुझे : साँप, हिरन, उल्लू ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : गिरधर राठी