"अस्पताल में / बरीस पास्तेरनाक / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर
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स्ट्रेचर को गाड़ी के अन्दर ढकेला | स्ट्रेचर को गाड़ी के अन्दर ढकेला | ||
− | अर्दली अस्पताल का उछला | + | अर्दली अस्पताल का उछला |
और ड्राइवर की सीट के पीछे आ बैठ गया | और ड्राइवर की सीट के पीछे आ बैठ गया | ||
एम्बुलैंस ने पटरी और ड्योढ़ी को | एम्बुलैंस ने पटरी और ड्योढ़ी को | ||
− | मुँह फाड़े देखते आवारागर्दों को पार किया | + | मुँह फाड़े देखते आवारागर्दों को पार किया |
सड़क की हलचल | सड़क की हलचल | ||
− | हैड लाइटों की | + | हैड लाइटों की रोशनी के साथ अन्धेरे में डूब गई |
+ | पुलिसमैन सड़कें और चेहरे | ||
+ | इनके प्रकाश में कुछ पल को चमके | ||
+ | नर्स अपने हाथ में | ||
+ | स्मेलिंग-साल्ट की शीशी ले झुकी थी | ||
+ | वर्षा हो रही थी | ||
+ | पाइप के नीचे से गुज़रते बेकार पानी की नीरस आवाज़ | ||
+ | कैज्युल्टी-वार्ड में आ रही थी | ||
+ | जबकि एक लाइन के बाद दूसरी लाइन में | ||
+ | केस-शीट घसीट में लिखी जा रही थी | ||
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+ | उन्होंने प्रवेश द्वार के पास | ||
+ | उसे बिस्तर पर लिटा दिया | ||
+ | वार्ड बिल्कुल भरा था | ||
+ | आयोडिन की बदबू आ रही थी | ||
+ | और खिड़की से हवा के झोंके | ||
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+ | वर्गाकार खिड़की से | ||
+ | बाग़ का कुछ हिस्सा | ||
+ | और आकाश का एक टुकड़ा | ||
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+ | ध्यान से देख रहा था नया मरीज़ | ||
+ | वार्ड को, फ़र्श को और सफ़ेद कोटों को | ||
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+ | तब उसको अचानक महसूस हुआ — | ||
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+ | तभी पूरी कृतज्ञता से | ||
+ | उसने खिड़की से देखा — | ||
+ | एक दीवार नगर की रोशनी से | ||
+ | मानो आग की चिंगारी से जगमगा उठी है | ||
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+ | नगर की चार-दीवारी पर रक्तिम चमक थी | ||
+ | रोशनी में एक मेपल की छाया थी | ||
+ | जिसकी टेढ़ी टहनी नीचे झुककर | ||
+ | बीमार को सलाम कर रही थी | ||
+ | मानो विदाई की औपचारिकता | ||
+ | निभा रही थी | ||
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+ | मरीज सोच रहा था — | ||
+ | हे प्रभो | ||
+ | तुम्हारे काम कितने पूर्ण हैं | ||
+ | बिस्तर और लोग और दीवारें | ||
+ | मेरी मौत की रात | ||
+ | और रात का यह नगर | ||
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+ | मैंने नींद की एक ख़ूराक ले ली है | ||
+ | रूमाल निकालकर अपने आँसू पोंछता हूँ | ||
+ | हे प्रभो | ||
+ | भावुकता के आँसू | ||
+ | तुम्हें देखने से मुझे रोकते हैं | ||
+ | ये मुझे ऐसे ही आराम देते हैं | ||
+ | जैसे धुन्धला प्रकाश | ||
+ | जब बेहोश होकर मेरे बिस्तर पर | ||
+ | यह जानकर गिरता है | ||
+ | कि मैं और मेरी नियति | ||
+ | तुम्हारे अमूल्य उपहार हैं | ||
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+ | अस्पताल के बिस्तर पर मरते हुए | ||
+ | मैं तुम्हारे हाथों की गरमी महसूस करता हूँ | ||
+ | तुम मुझे एक रचना की तरह | ||
+ | जिसे तुमने ही रूप दिया है | ||
+ | सम्हाले हुए हो | ||
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+ | और मुझे | ||
+ | जौहरी की तिजोरी में अँगूठी की तरह | ||
+ | कहीं दूर छिपाने जा रहे हो | ||
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक''' | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक''' | ||
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17:31, 21 अक्टूबर 2021 के समय का अवतरण
वे सारी पटरी को घेरकर खड़े थे
जैसे शो-विण्डो के आगे हों
स्ट्रेचर को गाड़ी के अन्दर ढकेला
अर्दली अस्पताल का उछला
और ड्राइवर की सीट के पीछे आ बैठ गया
एम्बुलैंस ने पटरी और ड्योढ़ी को
मुँह फाड़े देखते आवारागर्दों को पार किया
सड़क की हलचल
हैड लाइटों की रोशनी के साथ अन्धेरे में डूब गई
पुलिसमैन सड़कें और चेहरे
इनके प्रकाश में कुछ पल को चमके
नर्स अपने हाथ में
स्मेलिंग-साल्ट की शीशी ले झुकी थी
वर्षा हो रही थी
पाइप के नीचे से गुज़रते बेकार पानी की नीरस आवाज़
कैज्युल्टी-वार्ड में आ रही थी
जबकि एक लाइन के बाद दूसरी लाइन में
केस-शीट घसीट में लिखी जा रही थी
उन्होंने प्रवेश द्वार के पास
उसे बिस्तर पर लिटा दिया
वार्ड बिल्कुल भरा था
आयोडिन की बदबू आ रही थी
और खिड़की से हवा के झोंके
वर्गाकार खिड़की से
बाग़ का कुछ हिस्सा
और आकाश का एक टुकड़ा
देता दिखाई था
ध्यान से देख रहा था नया मरीज़
वार्ड को, फ़र्श को और सफ़ेद कोटों को
जब नर्स ने
अपना सिर हिला-हिला प्रश्न किए उससे
तब उसको अचानक महसूस हुआ —
इस दुर्गति से
उसका बच पाना नामुमकिन है
तभी पूरी कृतज्ञता से
उसने खिड़की से देखा —
एक दीवार नगर की रोशनी से
मानो आग की चिंगारी से जगमगा उठी है
नगर की चार-दीवारी पर रक्तिम चमक थी
रोशनी में एक मेपल की छाया थी
जिसकी टेढ़ी टहनी नीचे झुककर
बीमार को सलाम कर रही थी
मानो विदाई की औपचारिकता
निभा रही थी
मरीज सोच रहा था —
हे प्रभो
तुम्हारे काम कितने पूर्ण हैं
बिस्तर और लोग और दीवारें
मेरी मौत की रात
और रात का यह नगर
मैंने नींद की एक ख़ूराक ले ली है
रूमाल निकालकर अपने आँसू पोंछता हूँ
हे प्रभो
भावुकता के आँसू
तुम्हें देखने से मुझे रोकते हैं
ये मुझे ऐसे ही आराम देते हैं
जैसे धुन्धला प्रकाश
जब बेहोश होकर मेरे बिस्तर पर
यह जानकर गिरता है
कि मैं और मेरी नियति
तुम्हारे अमूल्य उपहार हैं
अस्पताल के बिस्तर पर मरते हुए
मैं तुम्हारे हाथों की गरमी महसूस करता हूँ
तुम मुझे एक रचना की तरह
जिसे तुमने ही रूप दिया है
सम्हाले हुए हो
और मुझे
जौहरी की तिजोरी में अँगूठी की तरह
कहीं दूर छिपाने जा रहे हो
अँग्रेज़ी से अनुवाद : रमेश कौशिक