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दफ़्तर के अन्दर
धरती का सर्वाधिक मूल्यवान हो के भी
शासक द्वारा
बाढ के समय की बारिस जैसा सस्ता समझा हुआ जनता के पसीने
से बनी हुई आलमारियाँ हैं ।
और आलमारियों के अन्दर हैं,
नौकर का काम कर मालिक बना भ्रम पाले हुए इन्सानों के
बदनियत और असक्षमता का दुर्गन्ध आनेवाले फाइलेँ ।
जहाँ हमारे कमज़ोरियों के लेस से बँधा हुआ
एक वीभत्स इतिहास है,
हमारे निर्लज्जता से लिखा जा रहा
एक गूँगा वर्तमान है,
एक अनिश्चित भविष्य है ।
क्या आपको पता है,
उस दफ़्तर का नाम
अगर सिंहदरबार नहीं तो
और क्या है ?
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(नेपाली से कवि स्वयं द्वारा अनूदित)