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"जो अनकहा / शशिप्रकाश" के अवतरणों में अंतर

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22:41, 16 जनवरी 2022 के समय का अवतरण

दुख का एक दरख़्त था I

अधूरी ख़्वाहिशों की
झड़ती हुई पीली पत्तियाँ,
टपकते रहे कभी आँसू
कभी रक्त I

खुरदरी छाल वाले तने के नीचे
जहाँ सहिष्णु और धैर्यवान जड़ें थीं,
एक सोता बहता था
जड़ों से फुनगियों तक
 
और हृदय,
वह तो आकाश में थरथराता रहा
कन्दील की तरह  !