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"पात बिदा भएपछि / वीरेन्द्र पाठक" के अवतरणों में अंतर
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पात बिदा भए पछि सौर्न्दर्यको बात छैन
आज एक्लो रूखलाई माया दिने हात छैन।
साथ थियो बटुवाको, टाढिए आज ती पनि
दुनियाँमा मान्छे जति स्वार्थी अर्को जात छैन।
आँधी पनि सहनु छ, पानी पनि सहनु छ
कठ्याङ्ग्रीनु छ उसले, आज न्यानो रात छैन।
सुन्दरता रहिरहन्न बाहिरी आकृतिको
यो बुझेर नै उसमा यौटा पनि मात छैन।
दिने उसको प्रकृति, लिने होइन पटक्कै
सन्तोष यसमा त हो, अरु के मा ज्ञात छैन।