भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तीन स्थिति, तीन कविता / खडकसिँह राई ‘काँढा’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=खडकसिँह राई ‘काँढा’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:21, 24 जनवरी 2022 के समय का अवतरण
मपट्टि राम्ररी हेरेर
मुस्कुराइदिँदा, तिमी
पुरा फुलेका फूल हाँसे झैँ लाग्छ,
तिम्रो अनुपस्थितिमा पनि सम्झना
एउटी वयस्क स्त्रीको आउँछ,
तर प्रिये, किन हो
अरू कसैको बाहु माझ घेरिएको तिमी देख्दा
अबोध एक हरिणी फसे झैँ लाग्छ।