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"गहन शोक के बाद आ बसती है एक यथारीति अनुभूति / एमिली डिकिंसन / सुधा तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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गहन शोक के बाद आ बसती है एक यथारीति अनुभूति —
 
गहन शोक के बाद आ बसती है एक यथारीति अनुभूति —
अनुष्ठानपूर्वक स्थिर हो रहती हैं तंत्रिकाएँ, मक़बरे की तरह—
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अनुष्ठानपूर्वक स्थिर हो जाती हैं तंत्रिकाएँ,मक़बरे की तरह—
 
सख़्त दिल पूछता है ’क्या ’वह’ भी, झेलता था यही’,
 
सख़्त दिल पूछता है ’क्या ’वह’ भी, झेलता था यही’,
 
’कल की ही बात है ये या फिर सदियों पहले की’
 
’कल की ही बात है ये या फिर सदियों पहले की’

03:09, 1 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण

गहन शोक के बाद आ बसती है एक यथारीति अनुभूति —
अनुष्ठानपूर्वक स्थिर हो जाती हैं तंत्रिकाएँ,मक़बरे की तरह—
सख़्त दिल पूछता है ’क्या ’वह’ भी, झेलता था यही’,
’कल की ही बात है ये या फिर सदियों पहले की’
परिक्रमा करते हैं पाँव यंत्रवत —
ज़मीन पर, या हवा या फिर शून्य में —

काठ-से
बावजूद इसके कि उग आती है
एक बिल्लौर सुकून, पत्थर की मानिन्द —
भारी है यही वक़्त
और अगर बच रहे इसमें, तो याद करोगे
ज्यों जमते हुए लोग, याद करते हैं बर्फ़ को —
पहले — ठिठुरन — फिर जड़ता — फिर मुक्ति का क्षण —

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधा तिवारी

और अब पढ़िए कविता मूल अँग्रेज़ी में
                    Emily Dickinson
    After great pain, a formal feeling comes

After great pain, a formal feeling comes –
The Nerves sit ceremonious, like Tombs –
The stiff Heart questions ‘was it He, that bore,’
And ‘Yesterday, or Centuries before’?

The Feet, mechanical, go round –
A Wooden way
Of Ground, or Air, or Ought –
Regardless grown,
A Quartz contentment, like a stone –

This is the Hour of Lead –
Remembered, if outlived,
As Freezing persons, recollect the Snow –
First – Chill – then Stupor – then the letting go –