"कभी मीत के कंठ लगें / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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गल जाएँगे दुख सभी, मिट जाएगी पीर। | गल जाएँगे दुख सभी, मिट जाएगी पीर। | ||
'''कभी मीत के कंठ लगें, मेरे प्राण अधीर।''' | '''कभी मीत के कंठ लगें, मेरे प्राण अधीर।''' | ||
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+ | मन के भीतर बस तुम्हीं, पकड़े रहना हाथ। | ||
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+ | जड़- जंगम में एक तुम,ऐसा चेतन रूप। | ||
+ | शीतलहर में लग गले, ज्यों सर्दी की धूप। | ||
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+ | युगों -युगों से थी बसी, जो प्राणों में प्यास। | ||
+ | रूप तुम्हारा ले मिली, मेरी जीवन -आस।। | ||
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+ | जिस घर बहनें- बेटियाँ, वह घर स्वर्ग- समान। | ||
+ | आकर खुद रहते वहाँ, मानव देव- समान। | ||
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+ | मुझको तो मिलना सदा, धर बहना का रूप। | ||
+ | बेटी भी बनकर मिलो, वह भी रूप अनूप।। | ||
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+ | प्रभुवर मुझको दे सदा, इसी देह का दान। | ||
+ | बहन बनों, बेटी बनो, करूँ सदा मैं मान। | ||
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+ | जहाँ बहन के चरण पड़ें, वह देवों का थान। | ||
+ | शीश वहाँ मेरा झुके, मन में वह सम्मान। | ||
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+ | जनम -जनम का साथ था, जनम -जनम का खेल। | ||
+ | इसीलिए इस जन्म में, हुआ बहन से मेल। | ||
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+ | यह दूषित संसार है, दूषित सोच विचार। | ||
+ | नफरत को ही पूजते, क्या जाने यह प्यार। | ||
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+ | जीवन में होते रहें, चाहे जो संग्राम। | ||
+ | जिह्वा पर केवल रहे , सिर्फ तुम्हारा नाम। | ||
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10:33, 5 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
133
जब तक तन में साँस है, तेरी हूक, पुकार।
सारे सुख देकर तुझे, रोज लुटा दूँ प्यार ॥
134
रुक पाता है ना कभी, जीवन का संग्राम।
प्रिय की बाहों में मिले, जीवन को विश्राम।
135
मधुर अधर से तैरती ,रह -रहकर मुस्कान।
मधुर भाल को चूमकर,मिलता जीवन-दान।
136
नयनों में विश्वास है, आलिंगन में प्राण।
प्रियवर दे देना मुझे, यह उष्मित वरदान।
137
गल जाएँगे दुख सभी, मिट जाएगी पीर।
कभी मीत के कंठ लगें, मेरे प्राण अधीर।
138
छूट सकेगा ना कभी, तेरा मेरा साथ।
मन के भीतर बस तुम्हीं, पकड़े रहना हाथ।
139
जड़- जंगम में एक तुम,ऐसा चेतन रूप।
शीतलहर में लग गले, ज्यों सर्दी की धूप।
140
युगों -युगों से थी बसी, जो प्राणों में प्यास।
रूप तुम्हारा ले मिली, मेरी जीवन -आस।।
141
जिस घर बहनें- बेटियाँ, वह घर स्वर्ग- समान।
आकर खुद रहते वहाँ, मानव देव- समान।
142
मुझको तो मिलना सदा, धर बहना का रूप।
बेटी भी बनकर मिलो, वह भी रूप अनूप।।
143
प्रभुवर मुझको दे सदा, इसी देह का दान।
बहन बनों, बेटी बनो, करूँ सदा मैं मान।
144
जहाँ बहन के चरण पड़ें, वह देवों का थान।
शीश वहाँ मेरा झुके, मन में वह सम्मान।
145
जनम -जनम का साथ था, जनम -जनम का खेल।
इसीलिए इस जन्म में, हुआ बहन से मेल।
146
यह दूषित संसार है, दूषित सोच विचार।
नफरत को ही पूजते, क्या जाने यह प्यार।
147
जीवन में होते रहें, चाहे जो संग्राम।
जिह्वा पर केवल रहे , सिर्फ तुम्हारा नाम।