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"मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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भरम अब है ही नहीं  
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मीत तेरे भान में हूँ,
जगती की छाया का।  
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मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
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1
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भरम अब है ही नहीं
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जगती की छाया का।
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मोह जी को है नहीं
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आज किसी माया का।
  
मीतु तुम्हारे भान में हूँ,
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लग रहा प्रज्ञान में हूँ
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
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मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
 
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मोह जी को है नहीं
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हर दिशा अब गा रही
आज किसी  माया का।
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मांगल्य ध्वनि आ रही।
 
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प्रेम- मिश्रित मधु पिया,
लग रहा कि प्रज्ञान में हूँ  
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मद-समर्पण- सा हुआ।
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।  
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दस दिशाएँ गा रही  
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मांगलध्वनि आ रही।  
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ईश के वरदान में हूँ,
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मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
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प्रेम मिश्रित मधु पिया,  
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मद-समर्पण सा हुआ।  
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अनहद से सम्मान में हूँ,
 
अनहद से सम्मान में हूँ,
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।  
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मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
 
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3
कैसा विरह यह पिया !
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मिलन भी जब ना हुआ।
मिलन भी जब ना हुआ।
+
कैसा विरह यह पिया !
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दूर रहकर भी मुझे
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मिलन का सुख दे दिया
  
सच है- मैं अनुमान में हूँ!  
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''सच है- मैं अनुमान में हूँ!'''
 
'''मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।'''  
 
'''मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।'''  
 
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16:23, 6 फ़रवरी 2022 का अवतरण

 
मीत तेरे भान में हूँ,
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
 1
भरम अब है ही नहीं
जगती की छाया का।
मोह जी को है नहीं
आज किसी माया का।

लग रहा प्रज्ञान में हूँ
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
2
हर दिशा अब गा रही
मांगल्य ध्वनि आ रही।
प्रेम- मिश्रित मधु पिया,
मद-समर्पण- सा हुआ।

अनहद से सम्मान में हूँ,
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।
3
मिलन भी जब ना हुआ।
कैसा विरह यह पिया !
दूर रहकर भी मुझे
मिलन का सुख दे दिया

सच है- मैं अनुमान में हूँ!'
मैं तुम्हारे ध्यान में हूँ।