भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अच्छा! / नवीन कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
11:29, 10 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
मैं रोना चाहता था और
सो जाना चाहता था
कल को
किसी प्रेम पगी स्त्री का विलाप सुन नहीं सकूँगा
पृथ्वी पर हवाएं उलट पलट जाएंगी
समुद्र की लहरें बिना चांदनी के ही
अर्द्धद्वितीया को तोड़-तोड़ उर्ध्वचेतस् विस्फोट करेंगी
मैंने प्रेम करना चाहा
सारी पृथ्वी को
अपने को नहीं
लोगों ने समझाया 'ये तुम्हीं हो जिसके कारण तुम जीते
मैंने कहा -'अच्छा!'