भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अग्निस्नान(सोनेट) / अनिमा दास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अनिमा दास }} {{KKCatKavita}} <poem> </poem>' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
न लाँघ पाऊँ में सौमित्र की तृतीय रेखा..किंतु हूँ प्रतिज्ञाबद्ध
 +
मैं दूँगी अग्नि परीक्षा...मैं जाह्नवी..हूँ आजन्म परंपराबद्ध
 +
अतीत-वर्तमान-भविष्य : है केवल ग्रंथांकित करुण वंदन
 +
निस्पंदन है वक्ष मेरा किंतु उर्वी आज नहीं देती मृदु आलिंगन।
 +
 +
कई वनछविआँ होतीं भस्मित,होते हत दशकंध दृप्त
 +
तथापि पुनर्वार एक सीता होती समर्पित,अग्नि होती तृप्त
 +
तमस्वी गुहाओं में गरजती है विनाश की उग्र प्रतिच्छाया
 +
न आते रघुवीर...न मिटती काल कराल की विकृत माया।
 +
 +
होगा तुम्हारा पुनरागमन..है पथ तुम्हारा उज्ज्वलित
 +
सहस्र दीपक की लताएँ..मनमृदा से हुईं हैं विकसित
 +
कर परास्त तमस को एक क्षुद्र किंतु दीर्घ संचेतना दी
 +
यह संदेश नहीं था निरर्थक,नहीं थी दुराशा अयोध्या की।
 +
 +
 +
समग्र अयोध्या के दिगंत पर है...द्युतिमय दिव्य दीपावली
 +
दीर्घ तमिस्र का होगा अंत...समस्त सृष्टि गाएगी विरुदावली।
  
 
</poem>
 
</poem>

12:09, 26 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण

न लाँघ पाऊँ में सौमित्र की तृतीय रेखा..किंतु हूँ प्रतिज्ञाबद्ध
मैं दूँगी अग्नि परीक्षा...मैं जाह्नवी..हूँ आजन्म परंपराबद्ध
अतीत-वर्तमान-भविष्य : है केवल ग्रंथांकित करुण वंदन
निस्पंदन है वक्ष मेरा किंतु उर्वी आज नहीं देती मृदु आलिंगन।

कई वनछविआँ होतीं भस्मित,होते हत दशकंध दृप्त
तथापि पुनर्वार एक सीता होती समर्पित,अग्नि होती तृप्त
तमस्वी गुहाओं में गरजती है विनाश की उग्र प्रतिच्छाया
न आते रघुवीर...न मिटती काल कराल की विकृत माया।

होगा तुम्हारा पुनरागमन..है पथ तुम्हारा उज्ज्वलित
सहस्र दीपक की लताएँ..मनमृदा से हुईं हैं विकसित
कर परास्त तमस को एक क्षुद्र किंतु दीर्घ संचेतना दी
यह संदेश नहीं था निरर्थक,नहीं थी दुराशा अयोध्या की।


समग्र अयोध्या के दिगंत पर है...द्युतिमय दिव्य दीपावली
दीर्घ तमिस्र का होगा अंत...समस्त सृष्टि गाएगी विरुदावली।