भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम का पौधा / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि विभा त्रिपाठी }} {{KKCatKavita}} <poem> </poem>' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
+
क्यों तुम
 +
प्रेम का पौधा
 +
हरा-भरा न रख सके
 +
मुरझा गए पत्ते
 +
और टूट कर
 +
शाख से गिरते रहे
 +
क्यों मैं
 +
सूखी- बेजान मुरझाई- सी
 +
पातियों को पतझड़ की रुत में
 +
आँसुओं से सींचती रही
 +
दोबारा खिल उठने की आस में
 +
क्यों न सोचा
 +
कि मैं खुद अकेले
 +
कभी बहार का मौसम
 +
नहीं बुला सकती
 +
जब तलक
 +
‘तुम’ और ‘मैं’ से बढ़कर
 +
हृदय में ‘हम’ का बीज न बोया जायेगा,
 +
प्रेम की बेल पर
 +
तब तलक हरियाली नहीं आ सकती!
 
</poem>
 
</poem>

18:20, 26 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण

क्यों तुम
प्रेम का पौधा
हरा-भरा न रख सके
मुरझा गए पत्ते
और टूट कर
शाख से गिरते रहे
क्यों मैं
सूखी- बेजान मुरझाई- सी
पातियों को पतझड़ की रुत में
आँसुओं से सींचती रही
दोबारा खिल उठने की आस में
क्यों न सोचा
कि मैं खुद अकेले
कभी बहार का मौसम
नहीं बुला सकती
जब तलक
‘तुम’ और ‘मैं’ से बढ़कर
हृदय में ‘हम’ का बीज न बोया जायेगा,
प्रेम की बेल पर
तब तलक हरियाली नहीं आ सकती!