भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नेपथ्य से संगीत / देवेश पथ सारिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेश पथ सारिया |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं | |
− | + | रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच | |
+ | मैं सिर पर शौर्य पताका ताने | ||
+ | सूर्य-सा चमकता खड़ा था | ||
+ | मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में | ||
− | + | इस विभीषिका में | |
− | + | बांसुरी के संगीत की रौ में | |
− | + | आँखें मूँद बह जाने का अर्थ होता | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | इस विभीषिका में | + | |
− | बांसुरी के संगीत की रौ में | + | |
− | + | ||
तीर का गले को बींधते चले जाना | तीर का गले को बींधते चले जाना | ||
− | बांस की धुन पर | + | कान में बांसुरी की तरह |
− | थिरकती रही | + | बजती रही तुम्हारी पुकार |
+ | |||
+ | बांस की धुन पर | ||
+ | थिरकती रही तलवार। | ||
</poem> | </poem> |
21:09, 7 मार्च 2022 के समय का अवतरण
शुक्र नेपथ्य में छूट गया था कहीं
रण कर्कश दुंदुभी के शोर के बीच
मैं सिर पर शौर्य पताका ताने
सूर्य-सा चमकता खड़ा था
मृत्यु के अँधेरे कोलाहल में
इस विभीषिका में
बांसुरी के संगीत की रौ में
आँखें मूँद बह जाने का अर्थ होता
तीर का गले को बींधते चले जाना
कान में बांसुरी की तरह
बजती रही तुम्हारी पुकार
बांस की धुन पर
थिरकती रही तलवार।