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हलकी हरी हैं मेरी महबूबा की आँखें
हरी
जैसे अभी-अभी सींचा हुआ
तारपीन का रेशमी दरख़्त,
हरी
जैसे सोने के पत्तर पर
हरी मीनाकारी ।
ये कैसा माजरा है, बिरादरान,
कि नौ सालों के दौरान
एक बार भी उसके हाथ
मेरे हाथों से नहीं छुए ।
मैं यहाँ बूढ़ा हुआ
वह वहाँ ।
मेरी दुख़्तर-बीवी
तुम्हारी गुदाज़-गोरी गरदन पर
अब सलवटें उभर रही हैं ।
सलवटों का उभरना
इस तरह नामुमकिन है हमारे लिए
बूढ़ा होना ।
जिस्म की बोटियों के ढीले पड़ने को
कोई और नाम दिया जाना चाहिए,
उम्र का बढ़ना
बूढ़ा होना
उन लोगों का मर्ज़ है जो इश्क़ नहीं कर सकते ।
१९४७
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल