भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कविता / संतोष अलेक्स" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{K...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:25, 17 मार्च 2022 के समय का अवतरण
कहा जा रहा है कि कविता खत्म हो रही है
पर मुझे हर कहीं कविता दिखाई देती हैं
माँ की आँखों में
पिता की सोच में
भाई की बेचैनी में
बहन की हँसी में
जिसेमैं छूता हूँ
देखता हूँ
महसूस करता हूँ
हरवह चीज कविता है
झरनों का बहना
नदी का समुंदर में समाना
सुबह का आसमान
शाम को लौटती हुई चिड़ियाँ
कविता ही तो रचती हैं
किसान का बीज बोना
उसके बदन पर चमकती
पसीने की बूंद
कविता है
कविता है समूचा जीवन
समूची धरती ही कविता है