भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उन्नत भाल / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रश्मि विभा त्रिपाठी |संग्रह= }} Catego...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
मन बड़ा निर्मल | मन बड़ा निर्मल | ||
मन्दाकिनी- सा! | मन्दाकिनी- सा! | ||
− | |||
19 | 19 | ||
तुम गंगा- से | तुम गंगा- से |
15:18, 21 मार्च 2022 के समय का अवतरण
12
है अविभाज्य
तुम सुख-साम्राज्य
बढ़ाते चलो।
13
तुम फूल-से
सदा खिलखिलाओ
खुश्बू फैलाओ।
14
तुम सूर्य-से
अँधेरे भय खाते
थरथराते!
15
तुम रंग-से
धन्य भाग हों बड़े
जिसपे पड़े!
16
तुम शिव-से
स्वयं विष पी लिया
जीवन दिया!
17
करते क्षमा
कौन सी मैं उपमा
तुम्हें अब दूँ?
18
तुम सरल
मन बड़ा निर्मल
मन्दाकिनी- सा!
19
तुम गंगा- से
जो आचमन करे
निश्चय तरे!
20
तुम शैल- से
मात्र मन- मैल से
टूट पड़ते!
21
यही माँगती
तुम फूलो औ फलो
सुख में पलो।
22
उन्नत भाल
उनके आशीष का
ये है कमाल।
23
पाया आशीष
तुमसे प्रफुल्लित
प्राण-शिरीष।