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"भावय / विंदा करंदीकर / स्मिता दात्ये" के अवतरणों में अंतर

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'''भावय : कोंकण के पोंभुर्ला गाँव के ग्राम देवता हैं भगवान शिव, जिनका मन्दिर 'स्थानेश्वर' कहलाता है। बरसात के मौसम में किसी एक दिन जब जमकर वर्षा हो रही हो. सारे ग्रामवासी इस मन्दिर के सामने खुली जगह में एकत्र होते हैं। यह जगह लाल मिट्टी के  
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'''भावय : कोंकण के पोंभुर्ला गाँव के ग्राम देवता हैं भगवान शिव, जिनका मन्दिर 'स्थानेश्वर' कहलाता है। बरसात के मौसम में किसी एक दिन जब जमकर वर्षा हो रही हो. सारे ग्रामवासी इस मन्दिर के सामने खुली जगह में एकत्र होते हैं। यह जगह लाल मिट्टी के कारण लाल कीचड़ से भरी होती है। वैसे तो इस गाँव में छुआछूत की प्रथा काफ़ी प्रचलित है, परन्तु इस दिन सारा भेदभाव भूलकर सारे ग्रामवासी मिलकर इस लाल कीचड़ में पारम्परिक खेल और नृत्य का आनन्द उठाते हैं। सब लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर, कन्धे से कन्धा मिलाकर खूब नाचते हैं। इसी उत्सव को 'भावय' कहा जाता है। विशेष बात यह है कि 'भावय केवल इसी गाँव में प्रचलित है, कोंकण प्रदेश के अन्य गाँवों में नहीं।'''  
कारण लाल कीचड़ से भरी होती है। वैसे तो इस गाँव में छुआछूत की प्रथा काफ़ी प्रचलित है, परन्तु इस दिन सारा भेदभाव भूलकर सारे ग्रामवासी मिलकर इस लाल कीचड़ में पारम्परिक खेल और नृत्य का आनन्द उठाते हैं। सब लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर, कन्धे से कन्धा मिलाकर खूब नाचते हैं। इसी उत्सव को 'भावय' कहा जाता है। विशेष बात यह है कि 'भावय केवल इसी गाँव में प्रचलित है, कोंकण प्रदेश के अन्य गाँवों में नहीं।'''  
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खत्म काम है; उमड़े गाने  

00:01, 11 अप्रैल 2022 के समय का अवतरण

भावय : कोंकण के पोंभुर्ला गाँव के ग्राम देवता हैं भगवान शिव, जिनका मन्दिर 'स्थानेश्वर' कहलाता है। बरसात के मौसम में किसी एक दिन जब जमकर वर्षा हो रही हो. सारे ग्रामवासी इस मन्दिर के सामने खुली जगह में एकत्र होते हैं। यह जगह लाल मिट्टी के कारण लाल कीचड़ से भरी होती है। वैसे तो इस गाँव में छुआछूत की प्रथा काफ़ी प्रचलित है, परन्तु इस दिन सारा भेदभाव भूलकर सारे ग्रामवासी मिलकर इस लाल कीचड़ में पारम्परिक खेल और नृत्य का आनन्द उठाते हैं। सब लोग एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर, कन्धे से कन्धा मिलाकर खूब नाचते हैं। इसी उत्सव को 'भावय' कहा जाता है। विशेष बात यह है कि 'भावय केवल इसी गाँव में प्रचलित है, कोंकण प्रदेश के अन्य गाँवों में नहीं।

खत्म काम है; उमड़े गाने
हैं झड़ी लगाती बरसातें
मँडराती तेज हवाएँ
बालियाँ धान की लहलह
कोंकण के कंगाल कवि तब
गया खोजने मन्दिर झटपट
हाँ, थी भावय ! चेतनता का
तूफान उठा; मुख से निकली:
सीधी सादी ढोलक की लय —
नाचो भावय ! नाचो भावय !

पोंभुर्ला का यह स्थानेश्वर,
सरल सदाशिव भोले शंकर;
भाये उसको अपनी भावय
जो माने ना जाति का भय;
जब भी नाचें इस भावय में
हम ही जनता; बात हृदय में,
जनता, जनता, जनता हैं हम,
इस अद्वैत में ही है नारायण,
रौदें मैं-पन; बनें प्रेममय,
नाचो भावय ! नाचो भावय !

लो, तेज हुई ढोलक की लय,
कीचड़ लाल; लाल ही भावय ।
भावय गूँजी, भीड़ हो गई;
चलो, न छोड़ो, लगन लग गई;
भिड़ा लो कन्धे, पकड़ो कसकर।
अभेद्य बना लो छाती का गढ़
लड़ो, चढ़ो या गिरो साथ में
भेद नहीं नौकर मालिक में;
बनो समान, बनो मृत्युंजय ।
नाचो भावय ! नाचो भावय !

रख कीचड़ ये सरमाथे पर
नकली भेद सब चलो भुलाकर
मानवता का मन्दिर बनता,
बनकर छत है अम्बर तनता;
बन्धुता का एक ही नाता
वन्दनीय हो नव मानवता,
अभिषेक करें स्वतन्त्रता का;
मीठी वाणी, मन्त्र न दूजा ।
मानवता की बोलो जय जय !
नाचो भावय ! नाचो भावय !

इस मिट्टी से सबका आना;
माटी में ही है मिल जाना ।
माटी आदि, माटी ही अन्त;
फिर क्योंकर स्वार्थ प्रपंच ?
आस्वाद बन्धुता का चखने
बँधो समता के बन्धन में;
इस मिट्टी को रखकर साक्षी
आओ बनें हम उड़ते पाखी ।
दुनिया अपनी; फिर क्यों संचय ?
नाचो भावय ! नाचो भावय !

अमराई की है आड़ घनी
छिपी है जिसमें बस्ती अपनी;
बाड़े हैं छोटे; मामूली घर;
नन्हें फूल खिलते छप्पर पर;
क्यारियाँ छोटी अँगनों में;
है फ़सल धान के खेतों में;
धुआँधार कलकल झरझर,
लपके झपटे नटखट निर्झर;
यह क्या कम है? भूमि हमारी स्वर्गमय !
नाचो भावय ! नाचो भावय !

मराठी भाषा से अनुवाद : स्मिता दात्ये