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"इसलिए उगता है पेड़ / विनोद शाही" के अवतरणों में अंतर

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17:02, 14 अप्रैल 2022 के समय का अवतरण

डाल से उड़ जाने के बाद भी
बचा रह जाता है पक्षी
पेड़ में धड़कन की तरह

पूरा पढ़ लेने के बाद भी
पढ़ना होता रहता है
भाषा की धड़कन की तरह

आप चाहें तो इसे
कविता भी कह सकते हैं

डाल पर खिले फूल की सुगन्ध
हवा में तैरती है
पक्षी की स्मृति की तरह

पढ़ी ही नहीं
फिर से लिखी भी जाती है कविता
और पाठक के भीतर से
एक कवि की सुगन्ध आने लगती है

कवि होते ही
पाठक को लगता है
कि वह भी हमेशा से एक कवि था

लगता है पेड़ को
कि वह इसलिए उगा
कि उसके भीतर पनप सके
एक पक्षी की आत्मा