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"नदी की सम्वेदना का गीत / मनोज जैन 'मधुर'" के अवतरणों में अंतर

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धार की हर बून्द   
 
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पावन ही इसे सहलाएँगे ।
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पावन है इसे सहलाएँगे ।
  
 
इस नदी के  
 
इस नदी के  

14:47, 15 अप्रैल 2022 के समय का अवतरण

इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे ।

इस नदी का जल हमें
बेहद लुभाता है ।
हो न हो पिछले जनम का
एक नाता है ।

हम नदी को
मान देकर गीत इसके गाएँगे ।

इस नदी की धार हमको
खूब भाती है ।
साथ पाकर यह हमारा
झूम जाती है ।

धार की हर बून्द
पावन है इसे सहलाएँगे ।

इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे ।

आँख में भर हम कछारों
को निहारेंगे ।
देह नदिया की जहाँ
टूटी सँवारेंगे ।

रूप पहले-सा
सजीला हम इसे लौटाएँगे ।

इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे ।