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"बुरी ज़िन्दगी के खिलाफ़ गीत / बैर्तोल्त ब्रेष्त / उज्ज्वल भट्टाचार्य" के अवतरणों में अंतर

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04:52, 25 अप्रैल 2022 के समय का अवतरण

एक

तुम भूखे हो, सर्वहारा
क्या रोटियाँ काफ़ी नहीं हैं ?
रोटियाँ तो हैं, पर हम तक पहुँचती नहीं हैं ।
 
वो क्या चीज़ है, जो तुम्हें रोटी से दूर रखती है ?
एक खिड़की के शीशे के अलावा कुछ भी नहीं !
फिर उसे तोड़ डालो !
मौत से मत डरो !
डरो, बदहाल ज़िन्दगी से ।
 
दो

और, रोटी और तुम जैसे भूखों के बीच
है सिर्फ़ एक खिड़की का शीशा
वह आलीशान मकान ! हाँ, जी भर देख लो !
हुआ होता तुम्हारा बसेरा ।

मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य