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सदस्य वार्ता:Lalit Kumar

993 bytes added, 13:11, 15 अप्रैल 2008
ललित जी, आप बेरुख क्यों हो रहे हैं, आप मुझे हमेशा जवाब भेजते थे। मैंने बाक़ी मैंम्बरों को चंद्रबिंदु की ग़लती को ठीक करने के लिए राज़ी कर लिया है। मुझे लगा आपके पास वक़्त नहीं था जो बिना कुछ बोले उस पन्ने को ठीक कर दिया। प्रतिष्ठा जी ने ये काम शुरु कर दिया है, मैं थोड़ी-सी नीति बना कर काम करने की सोच रहा हूँ, जो आपके बग़ैर तो हो ही नहीं सकता। [[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १३:११, १५ अप्रैल २००८ (UTC)
== मेरी फालतू तारीफ़ मत करो ==
कुछ करिये!...पर मैं कि कित्ता सी? मैंने "पहले से मौजूद सामग्री की प्रूफ़-रीडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका" निभा डाली और मुझे मालूम ही नहीं?
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