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"बर्फ का इंतजार / सविता सिंह" के अवतरणों में अंतर

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19:53, 4 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण

अन्‍यमनस्‍क पीली पड़ चुकी जिज्ञासा से ढंकी
मेपल के पत्‍तोंवाली जैसे कोई डाल हूं
जिससे लगकर हवा गुजरती है
जिसपर आसमान अपना थोड़ा नीला रंग
टपकाता है
जिस पर सूरज अपनी सबसे कमजोर किरण
फेंकता है
अन्‍यमनस्‍क फिर भी
मेरा मन बर्फ के गिरने का इंतजार करता है

बर्फ सभी कुछ ढंक देती है
पाप दुख शाप
छोटी मोटी बेचैनियां
सुख में चमकने वाले हीरे जैसे
एक दो क्षण
वह ढंक देती है
गिलहरियों के दृदय में व्‍याप्‍त यह डर
कि उन्‍हें कोई हर लेगा

अन्‍यमनस्‍क
बार-बार क्‍यों चाहती हूं वही
जो मुझे उदास करे
ढंक ले