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20:03, 4 नवम्बर 2008 का अवतरण

घर

कि जैसे बाँसुरी का स्वर

दूर रह कर भी सुनाई दे।

बंद आँखों से दिखई दे।


दो तटों के बीच

जैसे जल

छलछलाते हैं

विरह के पल


याद

जैसे नववधू, प्रिय के-

हाथ में कोमल कलाई दे।


कक्ष, आँगन, द्वार

नन्हीं छत

याद इन सबको

लिखेगी ख़त

आँख

अपने अश्रु से ज्यादा

याद को अब क्या लिखाई दे।