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"नीड गिराया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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+ | प्राण प्रिय रहा, जीवन- गरिमा | ||
+ | उस पर लांछन? धिक्कार तुम्हें | ||
+ | उनसे भी था ना प्यार तुम्हें । | ||
+ | जिनके हरपल,सुर पग चूमें | ||
+ | भयभीत असुर, पास न आएँ | ||
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+ | उसके मन की, पीड़ा पूछो | ||
+ | मरता पलपल, व्रीड़ा पूछो | ||
+ | स्वर्ग जलाकर, क्या पाया है | ||
+ | शेष राख ही, सरमाया है। | ||
+ | सदैव तुमने, अभिशाप दिया | ||
+ | यह बहुत बड़ा, है पाप किया । | ||
+ | वैरी तक को, दुख ना देता | ||
+ | कभी किसी से, कुछ ना लेता | ||
+ | उसको तुमने,सदा सताया | ||
+ | चुप क्यों? बोलो,क्या है पाया! | ||
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12:28, 19 मई 2022 के समय का अवतरण
डाल काट दी, नीड गिराया
ऐसा करके, क्या है पाया।
उड़े पखेरू, गुंजित अम्बर
भरा अचानक, दारुण वह स्वर
ग्रंथ जलाए, लाज न आई
खुद ही घर को, आग लगाई।
मंदिर की थी, पावन प्रतिमा
प्राण प्रिय रहा, जीवन- गरिमा
उस पर लांछन? धिक्कार तुम्हें
उनसे भी था ना प्यार तुम्हें ।
जिनके हरपल,सुर पग चूमें
भयभीत असुर, पास न आएँ
उनसे न रहा, प्यार तुम्हें तो
उसके मन की, पीड़ा पूछो
मरता पलपल, व्रीड़ा पूछो
स्वर्ग जलाकर, क्या पाया है
शेष राख ही, सरमाया है।
सदैव तुमने, अभिशाप दिया
यह बहुत बड़ा, है पाप किया ।
वैरी तक को, दुख ना देता
कभी किसी से, कुछ ना लेता
उसको तुमने,सदा सताया
चुप क्यों? बोलो,क्या है पाया!