भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हाइकु / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=ऊषा आई/ रश्मि विभा त्रिपाठी
 
|संग्रह=ऊषा आई/ रश्मि विभा त्रिपाठी
 
}}
 
}}
{{KKCatGadhwaliRachna}}
+
{{KKCatAwadhiRachna}}
 
{{KKCatHaiku}}
 
{{KKCatHaiku}}
 
<poem>
 
<poem>
  
 +
1
 +
हुड़क उठी
 +
मन- बियाबान में
 +
तू याद आया।
 +
 +
हूक उठिसि
 +
हियँ कै निचाट माँ
 +
तू यदि आवा।
 +
2
 +
जलता नभ
 +
यादें तेरी शीतल
 +
मन मुदित।
 +
 +
जरहि नभ
 +
सुधि तोरि जुड़ावै
 +
मन मुदित।
 +
3
 +
लिपटीं गले
 +
रोम- रोम चूमती
 +
यादें तुम्हारी।
 +
 +
लावहि कण्ठ
 +
रौंआँ- रौंआँ चुम्मइ
 +
सुधि तुम्हरी।
 +
4
 +
प्राण- वर्तिका
 +
निशदिन जलती
 +
याद में तेरी।
 +
 +
परान- बाती
 +
निसदिन जरइ
 +
सुधि माँ तोरी।
 +
5
 +
तुझमें डूबूँ
 +
जब इस जग से
 +
प्राण उड़ें ये।
 +
 +
तोही माँ बूडौं
 +
जबनि ई जग तै
 +
प्रान उड़ैं ई।
 +
6
 +
तुम क्या जानो
 +
जी लिया जो जीवन
 +
प्राण तुम्हीं थे।
 +
 +
तुम का जानौ
 +
जी लीन्ह जौं जिनगी
 +
प्रान तुं रह्यौ।
 +
7
 +
प्राण विकल
 +
कब होगा तुमसे
 +
महामिलन।
 +
 +
प्रान बिकल
 +
कबै होई तुमते
 +
महामिलनु।
 +
8
 +
कोई न इच्छा
 +
गले लगके रोएँ
 +
सुख- दुख में।
 +
 +
कौनी ना साध
 +
कण्ठ लाइ बिलपैं
 +
सुख- दुख माँ।
 +
 +
9
 +
चले न जाना
 +
रूह में ही उतर
 +
छुप तू जाना।
 +
 +
न पयानिउ
 +
रूहै माँहि उतरि
 +
लुकि तू जायौ।
 +
 +
10
 +
ऊषा आएगी
 +
रोकरके गाएगी
 +
भीगेगी शिला।
 +
 +
भुरुका आई
 +
रोबिलपि गवनि है
 +
सिला भींजिहै।
 +
11
 +
बीते वसंत
 +
खो गए तुम आनि
 +
पावौं मैं कैसे।
 +
 +
सिरै बसंत
 +
हेरा गे तुम आक
 +
पाव्हुँ कइसे।
 +
12
 +
क्या कुछ करूँ
 +
दुख तेरे मैं हरूँ
 +
चैन पा जाऊँ।
 +
 +
का कछु करौं
 +
दुख तोरे मैं हरौं
 +
चैन पावहुँ।
 +
 +
13
 +
माथे की पीर
 +
अंक में लेकरके
 +
धरूँगा धीर।
 +
 +
माथ कै पीर
 +
अंक माँहि लइकै
 +
धरिहौं धीर।
 +
 +
14
 +
आँसू की लिपि
 +
वे पढेंगे न कभी
 +
आँखों से अंधे।
 +
 +
आँसु कै लिपि
 +
ऊ बाँचिहैं न कब्हूँ
 +
आँखीं ते अन्हे।
 +
15
 +
तुम्हारे नैन
 +
गहरी झील- जैसे
 +
डूबना चाहूँ।
 +
 +
तुम्हरी आँखीं
 +
गहिर झीलि जस
 +
बूड़न चहौं।
 +
16
 +
क्या कुछ हुआ
 +
ओ री झील! तुझको
 +
किसी ने छुआ।
 +
 +
का कछुक भा
 +
ओ री झीलि! तोहिका
 +
को परसिसि।
 +
 +
17
 +
विरल यहाँ
 +
समझेंगे कभी न
 +
झील- सा मन।
 +
 +
बिरल इहाँ
 +
बूझिहैं कबौ नाहीं
 +
झीलि अस ही।
 +
18
 +
बैठा है यक्ष
 +
रूप- झील मोहक
 +
छूने नहीं दे।
 +
 +
बैठ ह्वै यच्छ
 +
रूप- झीलि मोहइ
 +
पर्सै न देइ।
 +
-0-
  
 
</poem>
 
</poem>

09:30, 26 मई 2022 का अवतरण


1
हुड़क उठी
मन- बियाबान में
तू याद आया।

हूक उठिसि
हियँ कै निचाट माँ
तू यदि आवा।
2
जलता नभ
यादें तेरी शीतल
मन मुदित।

जरहि नभ
सुधि तोरि जुड़ावै
मन मुदित।
3
लिपटीं गले
रोम- रोम चूमती
यादें तुम्हारी।

लावहि कण्ठ
रौंआँ- रौंआँ चुम्मइ
सुधि तुम्हरी।
4
प्राण- वर्तिका
निशदिन जलती
याद में तेरी।

परान- बाती
निसदिन जरइ
सुधि माँ तोरी।
5
तुझमें डूबूँ
जब इस जग से
प्राण उड़ें ये।

तोही माँ बूडौं
जबनि ई जग तै
प्रान उड़ैं ई।
6
तुम क्या जानो
जी लिया जो जीवन
प्राण तुम्हीं थे।

तुम का जानौ
जी लीन्ह जौं जिनगी
प्रान तुं रह्यौ।
7
प्राण विकल
कब होगा तुमसे
महामिलन।

प्रान बिकल
कबै होई तुमते
महामिलनु।
8
कोई न इच्छा
गले लगके रोएँ
सुख- दुख में।

कौनी ना साध
कण्ठ लाइ बिलपैं
सुख- दुख माँ।

9
चले न जाना
रूह में ही उतर
छुप तू जाना।

न पयानिउ
रूहै माँहि उतरि
लुकि तू जायौ।

10
ऊषा आएगी
रोकरके गाएगी
भीगेगी शिला।

भुरुका आई
रोबिलपि गवनि है
सिला भींजिहै।
11
बीते वसंत
खो गए तुम आनि
पावौं मैं कैसे।

सिरै बसंत
हेरा गे तुम आक
पाव्हुँ कइसे।
12
क्या कुछ करूँ
दुख तेरे मैं हरूँ
चैन पा जाऊँ।

का कछु करौं
दुख तोरे मैं हरौं
चैन पावहुँ।

13
माथे की पीर
अंक में लेकरके
धरूँगा धीर।

माथ कै पीर
अंक माँहि लइकै
धरिहौं धीर।

14
आँसू की लिपि
वे पढेंगे न कभी
आँखों से अंधे।

आँसु कै लिपि
ऊ बाँचिहैं न कब्हूँ
आँखीं ते अन्हे।
15
तुम्हारे नैन
गहरी झील- जैसे
डूबना चाहूँ।

तुम्हरी आँखीं
गहिर झीलि जस
बूड़न चहौं।
16
क्या कुछ हुआ
ओ री झील! तुझको
किसी ने छुआ।

का कछुक भा
ओ री झीलि! तोहिका
को परसिसि।

17
विरल यहाँ
समझेंगे कभी न
झील- सा मन।

बिरल इहाँ
बूझिहैं कबौ नाहीं
झीलि अस ही।
18
बैठा है यक्ष
रूप- झील मोहक
छूने नहीं दे।

बैठ ह्वै यच्छ
रूप- झीलि मोहइ
पर्सै न देइ।
-0-