"हाइकु / रश्मि विभा त्रिपाठी / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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+ | पिता धरा- से | ||
+ | सौ-सौ भार उठाए | ||
+ | तो भी मुस्काए। | ||
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+ | बप्पा भू जस | ||
+ | सौ सौ भारु उठावैं | ||
+ | तहूँ मुस्कावैं। | ||
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+ | कोना पीड़ा से अँटा | ||
+ | घर जो बँटा। | ||
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+ | अम्मा कै हींसे | ||
+ | कोना पीर ते अँटै | ||
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+ | हाँ पौंछ डाला | ||
+ | माँग सिन्दूर नित | ||
+ | 'माँग' करता । | ||
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+ | हाँ पौंछि डारा | ||
+ | माँगी- सैंनुर रोजु | ||
+ | 'माँगा' करइ। | ||
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+ | प्रेम का कुआँ | ||
+ | पी मन तृप्त हुआ | ||
+ | ये दिव्य सुधा। | ||
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+ | प्रेम कै कुँय्याँ | ||
+ | पीकै मन अघावा | ||
+ | ई दिब्य अमी। | ||
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+ | कौन सी विधि | ||
+ | पाती ये नेह- निधि | ||
+ | ईश- कृपा है। | ||
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+ | कउनी बिधि | ||
+ | पौंति ई नेह- निधि | ||
+ | ईस- किर्पा ह्वै। | ||
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+ | यादों से छुट्टी- | ||
+ | मिले इतवार तो | ||
+ | सुस्ता लूँ जरा। | ||
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+ | सुधि ते छुट्टी | ||
+ | मिलै इतवार तौ | ||
+ | सँथावौं तनी। | ||
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+ | क्या निभाओगे? | ||
+ | बुरा वक्त आएगा | ||
+ | लौट जाओगे। | ||
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+ | का निबइहौ? | ||
+ | कुसमय जौं आई | ||
+ | लौटि जइहौ। | ||
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+ | हाथ पकड़- | ||
+ | अलका को ले जाते | ||
+ | स्वप्न लुभाते। | ||
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+ | हाँथ गहिकै | ||
+ | सरगै लइ जावैं | ||
+ | सप्ने लुभावैं। | ||
+ | 9 | ||
+ | पास न आए | ||
+ | तुम्हें जरा सा दुख | ||
+ | छू भी न पाए। | ||
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+ | नेरे न आवै | ||
+ | तुम्का तनिकौ दुख | ||
+ | पर्सौ न पावै। | ||
+ | 10 | ||
+ | प्रेम-बन्धन | ||
+ | टूटे न रखना ध्यान | ||
+ | ये अरमान। | ||
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+ | प्रेम- बन्हन | ||
+ | टूटै न राखौ ध्यान | ||
+ | ई अरमान। | ||
+ | 11 | ||
+ | आस जो टूटी | ||
+ | तुम दे नेह- बूटी | ||
+ | जिला लेते हो। | ||
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+ | आस जौं टूट | ||
+ | तुम दै नेह- मूरि | ||
+ | जिया लेहि हौ। | ||
+ | 12 | ||
+ | माथे लगाऊँ | ||
+ | प्रभु का प्रसाद है | ||
+ | प्रेम तुम्हारा। | ||
+ | |||
+ | माथ लावउँ | ||
+ | प्रभु कै परसादी | ||
+ | नेहा तुम्हार। | ||
+ | 13 | ||
+ | प्रेम तराना | ||
+ | तुम्हें गुनगुनाना | ||
+ | है मेरा नेम। | ||
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+ | नेहा गउना | ||
+ | तुमका गउनब | ||
+ | ह्वै मोरि नेम। | ||
+ | 14 | ||
+ | मिला आशीष | ||
+ | प्रिय- प्रेम- रूप में | ||
+ | कृपालु ईश। | ||
+ | |||
+ | लहीं असीस | ||
+ | प्रिय- प्रेम रूप माँ | ||
+ | किर्पालु ईस। | ||
+ | 15 | ||
+ | मेरी झोली में | ||
+ | तेरे नेह के फूल | ||
+ | हरेंगे शूल। | ||
+ | |||
+ | मोरे कौंछा माँ | ||
+ | तोरे नेहा कै फूल | ||
+ | हरिहैं सूल। | ||
+ | 16 | ||
+ | तुमने दी है | ||
+ | प्रेम की छाँव घनी | ||
+ | अमृत बनी। | ||
+ | |||
+ | तुम दीन्हिउ | ||
+ | नेहा कै छाँही घनी | ||
+ | अमिर्त बनी। | ||
+ | 17 | ||
+ | आए आगत! | ||
+ | समय के सेहन | ||
+ | शुभ स्वागत। | ||
+ | |||
+ | आ गे पाहुन | ||
+ | समै केरि आँगन | ||
+ | सुभ पर्छन। | ||
+ | 18 | ||
+ | मन ने बाँधे | ||
+ | जिनसे प्रेम- धागे | ||
+ | सीमाएँ लाँघे। | ||
+ | |||
+ | मन बाँन्हिस | ||
+ | जहिते प्रेम- तागु | ||
+ | मिति नाँघिस। | ||
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09:59, 26 मई 2022 का अवतरण
1
पिता धरा- से
सौ-सौ भार उठाए
तो भी मुस्काए।
बप्पा भू जस
सौ सौ भारु उठावैं
तहूँ मुस्कावैं।
2
माता के हिस्से
कोना पीड़ा से अँटा
घर जो बँटा।
अम्मा कै हींसे
कोना पीर ते अँटै
घर जौं बँटै।
3
हाँ पौंछ डाला
माँग सिन्दूर नित
'माँग' करता ।
हाँ पौंछि डारा
माँगी- सैंनुर रोजु
'माँगा' करइ।
4
प्रेम का कुआँ
पी मन तृप्त हुआ
ये दिव्य सुधा।
प्रेम कै कुँय्याँ
पीकै मन अघावा
ई दिब्य अमी।
5
कौन सी विधि
पाती ये नेह- निधि
ईश- कृपा है।
कउनी बिधि
पौंति ई नेह- निधि
ईस- किर्पा ह्वै।
6
यादों से छुट्टी-
मिले इतवार तो
सुस्ता लूँ जरा।
सुधि ते छुट्टी
मिलै इतवार तौ
सँथावौं तनी।
7
क्या निभाओगे?
बुरा वक्त आएगा
लौट जाओगे।
का निबइहौ?
कुसमय जौं आई
लौटि जइहौ।
8
हाथ पकड़-
अलका को ले जाते
स्वप्न लुभाते।
हाँथ गहिकै
सरगै लइ जावैं
सप्ने लुभावैं।
9
पास न आए
तुम्हें जरा सा दुख
छू भी न पाए।
नेरे न आवै
तुम्का तनिकौ दुख
पर्सौ न पावै।
10
प्रेम-बन्धन
टूटे न रखना ध्यान
ये अरमान।
प्रेम- बन्हन
टूटै न राखौ ध्यान
ई अरमान।
11
आस जो टूटी
तुम दे नेह- बूटी
जिला लेते हो।
आस जौं टूट
तुम दै नेह- मूरि
जिया लेहि हौ।
12
माथे लगाऊँ
प्रभु का प्रसाद है
प्रेम तुम्हारा।
माथ लावउँ
प्रभु कै परसादी
नेहा तुम्हार।
13
प्रेम तराना
तुम्हें गुनगुनाना
है मेरा नेम।
नेहा गउना
तुमका गउनब
ह्वै मोरि नेम।
14
मिला आशीष
प्रिय- प्रेम- रूप में
कृपालु ईश।
लहीं असीस
प्रिय- प्रेम रूप माँ
किर्पालु ईस।
15
मेरी झोली में
तेरे नेह के फूल
हरेंगे शूल।
मोरे कौंछा माँ
तोरे नेहा कै फूल
हरिहैं सूल।
16
तुमने दी है
प्रेम की छाँव घनी
अमृत बनी।
तुम दीन्हिउ
नेहा कै छाँही घनी
अमिर्त बनी।
17
आए आगत!
समय के सेहन
शुभ स्वागत।
आ गे पाहुन
समै केरि आँगन
सुभ पर्छन।
18
मन ने बाँधे
जिनसे प्रेम- धागे
सीमाएँ लाँघे।
मन बाँन्हिस
जहिते प्रेम- तागु
मिति नाँघिस।