"हाइकु / कुँवर दिनेश सिंह / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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+ | 1 | ||
+ | पेड़ चीड़ के | ||
+ | बर्फ़ में भी रहते | ||
+ | हरे के हरे। | ||
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+ | बिर्वा चीड़ कै | ||
+ | बरफौ माँ रहँइँ | ||
+ | हरियरइ। | ||
+ | 2 | ||
+ | झोंके हवा के- | ||
+ | धौलाधार से आते- | ||
+ | बर्फ़ गबड़ि। | ||
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+ | झौंकु ब्यारि कै | ||
+ | धौलाधारि ते आवैं | ||
+ | बर्फ मिलाक। | ||
+ | 3 | ||
+ | शान्त है झील | ||
+ | गर्मियों की शाम में | ||
+ | सुख की फ़ील। | ||
+ | |||
+ | सान्ति ह्वै झील | ||
+ | गर्मिन कै सँझा माँ | ||
+ | सुख कै फ़ील! | ||
+ | 4 | ||
+ | सहसा मिले | ||
+ | झील के छोर पर | ||
+ | कमल खिले! | ||
+ | |||
+ | अचकै मिलै | ||
+ | झील कै छ्वार परि | ||
+ | सरोरू खिलै। | ||
+ | 5 | ||
+ | पंछी चहके | ||
+ | इस झील को रखें | ||
+ | साफ़ करके! | ||
+ | |||
+ | पच्छी चहिकैं | ||
+ | ई झीलि कैंहाँ राखैं | ||
+ | साफ़ कइकै। | ||
+ | 6 | ||
+ | खुशी की फ़ील | ||
+ | नाचते-गाते लोग | ||
+ | खामोश झील। | ||
+ | |||
+ | खुसी कै फ़ील | ||
+ | नाचैं- गावैं मनई | ||
+ | चुपानि झील। | ||
+ | 7 | ||
+ | नदी को देखा- | ||
+ | पहाड़ पर खींचे- | ||
+ | पानी की रेखा! | ||
+ | |||
+ | नदी लखिंन्ह | ||
+ | गिरि प घँइचिसि | ||
+ | पानी कै रेख। | ||
+ | 8 | ||
+ | रात की माया | ||
+ | चाँदनी में छलती | ||
+ | पेड़ की छाया। | ||
+ | |||
+ | निसि कै माया | ||
+ | अँजोरिया माँ छलै | ||
+ | बिर्वा कै छाँहीं। | ||
+ | 9 | ||
+ | अकेला पेड़ | ||
+ | घर की दीवार से | ||
+ | सटा है पेड़। | ||
+ | |||
+ | यकठा बिर्वा | ||
+ | घर केरि भीति तै | ||
+ | सटा ह्वै बिर्वा। | ||
+ | 10 | ||
+ | शीत का शूल | ||
+ | पेड़ों ने ओढ़ लिया | ||
+ | हिम दुकूल! | ||
+ | |||
+ | जाड़ु कै सूल | ||
+ | बिर्वा ओढ़ि लीन्हिन्ह | ||
+ | बर्फ़ क जामा । | ||
+ | 11 | ||
+ | पेड़ जलते | ||
+ | जंगल की आग में | ||
+ | चुप्प बलते। | ||
+ | |||
+ | बिर्वा जरहिं | ||
+ | बन केरि आगी माँ | ||
+ | चुप्प बरहिं। | ||
+ | 12 | ||
+ | कहीं बुराँश! | ||
+ | वसंत वह्नि लिये- | ||
+ | कहीं पलाश! | ||
+ | |||
+ | कहूँ बुराँस! | ||
+ | बसंता आगि लीन्हे | ||
+ | कहूँ परास! | ||
+ | 13 | ||
+ | सूर्य को ढाँपे | ||
+ | एक मोटा बादल | ||
+ | खुद भी काँपे! | ||
+ | |||
+ | सुर्ज का ढाँपै | ||
+ | याकु म्वट बदरा | ||
+ | आपहुँ काँपै। | ||
+ | 14 | ||
+ | धुँध है छाई | ||
+ | सूरज की आँखों में | ||
+ | नमी - सी छाई। | ||
+ | |||
+ | धुँन्ह छाइसि | ||
+ | सुर्ज कै आँखिन माँ | ||
+ | तरी छाइसि। | ||
+ | 15 | ||
+ | सूरज हारा | ||
+ | देखो आ पहुँचा है | ||
+ | साँझ का तारा। | ||
+ | |||
+ | सुर्ज कद्रिसि | ||
+ | लखहु, पगु धारा | ||
+ | संझा क तारा। | ||
+ | 16 | ||
+ | सपना कोई | ||
+ | चंदा की सूरत में | ||
+ | अपना कोई। | ||
+ | |||
+ | सपन कौनो | ||
+ | चन्ना कै सकलि माँ | ||
+ | आपन कौनौ। | ||
+ | 17 | ||
+ | चंदा सो गया | ||
+ | भोर कै बदरी माँ | ||
+ | चाँद खो गया। | ||
+ | |||
+ | चन्ना सोइ गा | ||
+ | भोर की बदरी मा | ||
+ | चन्ना हेरा गा। | ||
+ | 18 | ||
+ | अँधेरा मिटा | ||
+ | पर्वत की पीठ पे | ||
+ | सूरज दिखा। | ||
+ | |||
+ | अन्हेर नासि | ||
+ | सइल कै पीठी प | ||
+ | सुर्ज दिखान्ह। | ||
+ | -0- | ||
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10:08, 26 मई 2022 का अवतरण
1
पेड़ चीड़ के
बर्फ़ में भी रहते
हरे के हरे।
बिर्वा चीड़ कै
बरफौ माँ रहँइँ
हरियरइ।
2
झोंके हवा के-
धौलाधार से आते-
बर्फ़ गबड़ि।
झौंकु ब्यारि कै
धौलाधारि ते आवैं
बर्फ मिलाक।
3
शान्त है झील
गर्मियों की शाम में
सुख की फ़ील।
सान्ति ह्वै झील
गर्मिन कै सँझा माँ
सुख कै फ़ील!
4
सहसा मिले
झील के छोर पर
कमल खिले!
अचकै मिलै
झील कै छ्वार परि
सरोरू खिलै।
5
पंछी चहके
इस झील को रखें
साफ़ करके!
पच्छी चहिकैं
ई झीलि कैंहाँ राखैं
साफ़ कइकै।
6
खुशी की फ़ील
नाचते-गाते लोग
खामोश झील।
खुसी कै फ़ील
नाचैं- गावैं मनई
चुपानि झील।
7
नदी को देखा-
पहाड़ पर खींचे-
पानी की रेखा!
नदी लखिंन्ह
गिरि प घँइचिसि
पानी कै रेख।
8
रात की माया
चाँदनी में छलती
पेड़ की छाया।
निसि कै माया
अँजोरिया माँ छलै
बिर्वा कै छाँहीं।
9
अकेला पेड़
घर की दीवार से
सटा है पेड़।
यकठा बिर्वा
घर केरि भीति तै
सटा ह्वै बिर्वा।
10
शीत का शूल
पेड़ों ने ओढ़ लिया
हिम दुकूल!
जाड़ु कै सूल
बिर्वा ओढ़ि लीन्हिन्ह
बर्फ़ क जामा ।
11
पेड़ जलते
जंगल की आग में
चुप्प बलते।
बिर्वा जरहिं
बन केरि आगी माँ
चुप्प बरहिं।
12
कहीं बुराँश!
वसंत वह्नि लिये-
कहीं पलाश!
कहूँ बुराँस!
बसंता आगि लीन्हे
कहूँ परास!
13
सूर्य को ढाँपे
एक मोटा बादल
खुद भी काँपे!
सुर्ज का ढाँपै
याकु म्वट बदरा
आपहुँ काँपै।
14
धुँध है छाई
सूरज की आँखों में
नमी - सी छाई।
धुँन्ह छाइसि
सुर्ज कै आँखिन माँ
तरी छाइसि।
15
सूरज हारा
देखो आ पहुँचा है
साँझ का तारा।
सुर्ज कद्रिसि
लखहु, पगु धारा
संझा क तारा।
16
सपना कोई
चंदा की सूरत में
अपना कोई।
सपन कौनो
चन्ना कै सकलि माँ
आपन कौनौ।
17
चंदा सो गया
भोर कै बदरी माँ
चाँद खो गया।
चन्ना सोइ गा
भोर की बदरी मा
चन्ना हेरा गा।
18
अँधेरा मिटा
पर्वत की पीठ पे
सूरज दिखा।
अन्हेर नासि
सइल कै पीठी प
सुर्ज दिखान्ह।
-0-