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"ऊषा आएगी / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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अत्यंत हर्ष का विषय है कि प्रिय भगिनी रश्मि विभा त्रिपाठी द्वारा अनूदित और संपादित हाइकु- संग्रह 'ऊषा आएगी' (भुरुका आई) प्रकाशित हो रहा है। यह हाइकु-संग्रह हिंदी से अवधी में वैश्विक स्तर का कार्य है। पूर्व में जब मैंने भी इसी प्रकार का कार्य हिंदी से गढ़वाली में किया, तो अनुभव हुआ कि अन्य भाषा- बोलियों में वर्ण-संधान, उपयुक्तता, यथोचित संप्रेषण, छंद-निर्वाह तथा तदनुसार भाव बनाए रखना टेढ़ी खीर है।
 
अत्यंत हर्ष का विषय है कि प्रिय भगिनी रश्मि विभा त्रिपाठी द्वारा अनूदित और संपादित हाइकु- संग्रह 'ऊषा आएगी' (भुरुका आई) प्रकाशित हो रहा है। यह हाइकु-संग्रह हिंदी से अवधी में वैश्विक स्तर का कार्य है। पूर्व में जब मैंने भी इसी प्रकार का कार्य हिंदी से गढ़वाली में किया, तो अनुभव हुआ कि अन्य भाषा- बोलियों में वर्ण-संधान, उपयुक्तता, यथोचित संप्रेषण, छंद-निर्वाह तथा तदनुसार भाव बनाए रखना टेढ़ी खीर है।
 
मेरे द्वारा संपादित और हिंदी से गढ़वाली में अनूदित प्रकाशित कृति 'पहाड़ी पर चंदा' (काँठा माँ जून) अत्यंत लोकप्रिय हुई तथा सराही गई; क्योंकि यह हाइकु के क्षेत्र में हिंदी से गढ़वाली में अनूदित इस प्रकार का प्रथम कार्य था। हिंदी से अवधी  में रचना श्रीवास्तव  का अनूदित  संग्रह  ‘मन के द्वार हज़ार’ 2013 में प्रकाशित हुआ। रश्मि विभा त्रिपाठी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है; जो अत्यंत उपयोगी है।
 
मेरे द्वारा संपादित और हिंदी से गढ़वाली में अनूदित प्रकाशित कृति 'पहाड़ी पर चंदा' (काँठा माँ जून) अत्यंत लोकप्रिय हुई तथा सराही गई; क्योंकि यह हाइकु के क्षेत्र में हिंदी से गढ़वाली में अनूदित इस प्रकार का प्रथम कार्य था। हिंदी से अवधी  में रचना श्रीवास्तव  का अनूदित  संग्रह  ‘मन के द्वार हज़ार’ 2013 में प्रकाशित हुआ। रश्मि विभा त्रिपाठी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है; जो अत्यंत उपयोगी है।
  मेरा मानना है कि अनुवाद का अपना महत्त्व है। जब हिंदी भाषा की रचनाओं को अन्य भारतीय भाषाओं और बोलियों में अनूदित किया जाता है; तब यह महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। इससे हिंदी भाषा और बोलियों का अंतर्निहित संबंध और भी अधिक प्रगाढ़ होता है; जो भारतीयता को सुदृढ़ करता है।  इससे हमारी परंपरा और संस्कृति की संवाहक हिंदी और उसकी सहचरी बोलियाँ तथा भाषाएँ और अधिक संपन्न और सुदृढ़ होती हैं। इस प्रकार हिंदी से अवधी में किया गया यह अनुवाद और संपादन कार्य अत्यंत उच्चकोटि का है।]
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  मेरा मानना है कि अनुवाद का अपना महत्त्व है। जब हिंदी भाषा की रचनाओं को अन्य भारतीय भाषाओं और बोलियों में अनूदित किया जाता है; तब यह महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। इससे हिंदी भाषा और बोलियों का अंतर्निहित संबंध और भी अधिक प्रगाढ़ होता है; जो भारतीयता को सुदृढ़ करता है।  इससे हमारी परंपरा और संस्कृति की संवाहक हिंदी और उसकी सहचरी बोलियाँ तथा भाषाएँ और अधिक संपन्न और सुदृढ़ होती हैं। इस प्रकार हिंदी से अवधी में किया गया यह अनुवाद और संपादन कार्य अत्यंत उच्चकोटि का है।
 
चुनौतियाँ स्वीकार करके रश्मि ने हाइकु के लिए वैश्विक स्तर का कार्य कर दिखाया। रश्मि के साहित्यिक समर्पण द्वारा हिंदी और अवधी के मध्य हाइकु की दृष्टि से एक सुदृढ़ सेतु निर्मित हुआ। हिंदी रचनाओं का अन्य भारतीय भाषाओं-बोलियों में अनुवाद करने पर इनका अंतर्निहित संबंध, हमारी परंपरा और संस्कृति को और भी अधिक संपन्न और सुदृढ़ बनाता है।
 
चुनौतियाँ स्वीकार करके रश्मि ने हाइकु के लिए वैश्विक स्तर का कार्य कर दिखाया। रश्मि के साहित्यिक समर्पण द्वारा हिंदी और अवधी के मध्य हाइकु की दृष्टि से एक सुदृढ़ सेतु निर्मित हुआ। हिंदी रचनाओं का अन्य भारतीय भाषाओं-बोलियों में अनुवाद करने पर इनका अंतर्निहित संबंध, हमारी परंपरा और संस्कृति को और भी अधिक संपन्न और सुदृढ़ बनाता है।
 
अद्भुत संयोग है कि रश्मि के नाम में पहला शब्द रश्मि अर्थात् किरण है। आशा, आत्मविश्वास और रचनाधर्मिता की यह किरण अपने लेखन द्वारा अनेक महिलाओं को सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण के साथ कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।
 
अद्भुत संयोग है कि रश्मि के नाम में पहला शब्द रश्मि अर्थात् किरण है। आशा, आत्मविश्वास और रचनाधर्मिता की यह किरण अपने लेखन द्वारा अनेक महिलाओं को सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण के साथ कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।

20:33, 30 मई 2022 के समय का अवतरण

अत्यंत हर्ष का विषय है कि प्रिय भगिनी रश्मि विभा त्रिपाठी द्वारा अनूदित और संपादित हाइकु- संग्रह 'ऊषा आएगी' (भुरुका आई) प्रकाशित हो रहा है। यह हाइकु-संग्रह हिंदी से अवधी में वैश्विक स्तर का कार्य है। पूर्व में जब मैंने भी इसी प्रकार का कार्य हिंदी से गढ़वाली में किया, तो अनुभव हुआ कि अन्य भाषा- बोलियों में वर्ण-संधान, उपयुक्तता, यथोचित संप्रेषण, छंद-निर्वाह तथा तदनुसार भाव बनाए रखना टेढ़ी खीर है।
मेरे द्वारा संपादित और हिंदी से गढ़वाली में अनूदित प्रकाशित कृति 'पहाड़ी पर चंदा' (काँठा माँ जून) अत्यंत लोकप्रिय हुई तथा सराही गई; क्योंकि यह हाइकु के क्षेत्र में हिंदी से गढ़वाली में अनूदित इस प्रकार का प्रथम कार्य था। हिंदी से अवधी में रचना श्रीवास्तव का अनूदित संग्रह ‘मन के द्वार हज़ार’ 2013 में प्रकाशित हुआ। रश्मि विभा त्रिपाठी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है; जो अत्यंत उपयोगी है।
 मेरा मानना है कि अनुवाद का अपना महत्त्व है। जब हिंदी भाषा की रचनाओं को अन्य भारतीय भाषाओं और बोलियों में अनूदित किया जाता है; तब यह महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है। इससे हिंदी भाषा और बोलियों का अंतर्निहित संबंध और भी अधिक प्रगाढ़ होता है; जो भारतीयता को सुदृढ़ करता है। इससे हमारी परंपरा और संस्कृति की संवाहक हिंदी और उसकी सहचरी बोलियाँ तथा भाषाएँ और अधिक संपन्न और सुदृढ़ होती हैं। इस प्रकार हिंदी से अवधी में किया गया यह अनुवाद और संपादन कार्य अत्यंत उच्चकोटि का है।
चुनौतियाँ स्वीकार करके रश्मि ने हाइकु के लिए वैश्विक स्तर का कार्य कर दिखाया। रश्मि के साहित्यिक समर्पण द्वारा हिंदी और अवधी के मध्य हाइकु की दृष्टि से एक सुदृढ़ सेतु निर्मित हुआ। हिंदी रचनाओं का अन्य भारतीय भाषाओं-बोलियों में अनुवाद करने पर इनका अंतर्निहित संबंध, हमारी परंपरा और संस्कृति को और भी अधिक संपन्न और सुदृढ़ बनाता है।
अद्भुत संयोग है कि रश्मि के नाम में पहला शब्द रश्मि अर्थात् किरण है। आशा, आत्मविश्वास और रचनाधर्मिता की यह किरण अपने लेखन द्वारा अनेक महिलाओं को सकारात्मक और आशावादी दृष्टिकोण के साथ कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।
'ऊषा आएगी' शीर्षक अपने आप में आशा, विश्वास, सकारात्मकता, रचनात्मकता और ऊर्जा को समेटे हुए है। गर्व है कि रश्मि के साहित्यिक समर्पण की सुगंध ऐसी ही विभिन्न कृतियों के माध्यम से प्रसारित हो रही है। मैं प्रिय भगिनी रश्मि को इस उत्कृष्ट कार्य के लिए बधाई, शुभकामनाएँ तथा साधुवाद संप्रेषित करती हूँ। आप ऐसी ही अनेक कृतियों का सृजन करें ,जिससे हम गौरवान्वित होते रहें।