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"हाइकु / सुदर्शन रत्नाकर / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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धरा ने ओढ़ी
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ज्यों पीली चुनरिया
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सरसों खिली।
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भुई ओढ़िसि
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जस पियरी चुन्नी
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तारे बने बाराती
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व चाँद दूल्हा।
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तारे बनैं बराती
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औ चन्ना दुल्हा।
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प्रेम की बाती
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जब- जब जलती
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पीड़ा हरती।
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जबै- जबै जरहि
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बँधते मन
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प्रणय के धागे से
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सीवन पक्की।
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बँन्हहिं मन
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पिरेम कै ताग तै
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सींनि निम्मन।
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तुमने जानी
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मेरे मन की बात
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यही है प्यार।
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तुम चीन्हिउ
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बात मोरे ही केरि
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यहै पियार।
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प्यार तुम्हारा
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चाँदनी- सा शीतल
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चाँननी अस जूड़ु
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नसिसि तापु।
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तपती धरा
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खोया है रूप।
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घाम ज्याठ कै
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हेरान रूप।
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यादें ही यादें
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तेरे- मेरे प्यार की
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भूलती नहीं।
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सुधि ही सुधि
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तोर- मोर प्यार कै
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यादें तुम्हारी
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धरोहर हैं मेरी
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कैसे भूलूँ मैं
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सुधि तुम्हरी
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थाती हवै मोरि ,मैं
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कस बिसारौं।
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सदा साथ रहतीं
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सदा लगे रहहि
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सुधि देसि कै।
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मानव स्वार्थी।
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सम्भालकर रखो
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दोस्ती के रिश्ते।
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सम्हारिकै राखिउ
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मैत्री क नात।
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सागर- तट
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लहरों बिन सूना
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सूनी ज्यों माँग।
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हलोरा बिनु सून
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लहरें भीगीं
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लजाईं, लौटीं।
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हलोरि भींजै
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चंदा जौं गोहरन
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अठखेलियाँ
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सिन्धु लहरें।
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तुम्हारी याद
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चुपके से आती है
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रुला जाती है।
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तुम्हरी सुधि
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चुप्पे आवति हवै
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रुवावति ह्वै।
 
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08:56, 1 जून 2022 के समय का अवतरण

1
धरा ने ओढ़ी
ज्यों पीली चुनरिया
सरसों खिली।

भुई ओढ़िसि
जस पियरी चुन्नी
लय्या खिलिस।
2
साँझ होते ही
तारे बने बाराती
व चाँद दूल्हा।

सँझलौकइ
तारे बनैं बराती
औ चन्ना दुल्हा।
3
प्रेम की बाती
जब- जब जलती
पीड़ा हरती।

प्रेम कै बाती
जबै- जबै जरहि
पीर हरहि ।
4
बँधते मन
प्रणय के धागे से
सीवन पक्की।

बँन्हहिं मन
पिरेम कै ताग तै
सींनि निम्मन।
5
तुमने जानी
मेरे मन की बात
यही है प्यार।

तुम चीन्हिउ
बात मोरे ही केरि
यहै पियार।
6
प्यार तुम्हारा
चाँदनी- सा शीतल
मिटा है ताप

नेहा तुम्हार
चाँननी अस जूड़ु
नसिसि तापु।
7
तपती धरा
प्यासे पशु- परिन्दे
झुलसें बन्दे।

तपइ भुई
पियासे हर्हा- पच्छी
झुर्सैं मनई।
8
ज्येष्ठ की धूप
जलती वसुंधरा
खोया है रूप।

घाम ज्याठ कै
भुईं जरति हवै
हेरान रूप।
9
यादें ही यादें
तेरे- मेरे प्यार की
भूलती नहीं।

सुधि ही सुधि
तोर- मोर प्यार कै
नाहीं बिसरै।
10
यादें तुम्हारी
धरोहर हैं मेरी
कैसे भूलूँ मैं

सुधि तुम्हरी
थाती हवै मोरि ,मैं
कस बिसारौं।
11
कहीं भी जाऊँ
सदा साथ रहतीं
यादें देश की।

कहुऔं जावौं
सदा लगे रहहि
सुधि देसि कै।
12
उड़ते रहो
आसमान में ऊँचे
नजरें नीचे।

उड़ति रहौ
असमान माँ ऊँच
दीठिया खाले।
13
धरा सहती
उफ़ नहीं करती
मानव स्वार्थी।

भुइयाँ सहै
उफ्फ़ौ नाहीं करहि
मनई स्वार्थी।
14
नाजुक होते
सम्भालकर रखो
दोस्ती के रिश्ते।

अल्हरि हवैं
सम्हारिकै राखिउ
मैत्री क नात।
15
सागर- तट
लहरों बिन सूना
सूनी ज्यों माँग।

सगरा- तीर
हलोरा बिनु सून
ज्वँ माँगी सून।
16
लहरें भीगीं
चाँद ने जो बुलाया
लजाईं, लौटीं।

हलोरि भींजै
चंदा जौं गोहरन
लजानीं, लौटीं।
17
अठखेलियाँ
मिली जो सहेलियाँ
सिन्धु लहरें।

अटखेलीं जौं
भैंटिन सहेलरीं
सिन्धु- हलोरि।
18
तुम्हारी याद
चुपके से आती है
रुला जाती है।

तुम्हरी सुधि
चुप्पे आवति हवै
रुवावति ह्वै।
-0-