भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बड़े हो गए हम/ शशि पाधा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
ज़रूरी नहीं अब | ज़रूरी नहीं अब | ||
किसी का समर्थन | किसी का समर्थन | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 35: | ||
बिसराई पतझड़ | बिसराई पतझड़ | ||
हरे हो गए हम| | हरे हो गए हम| | ||
− | + | ||
− | + | ||
सुख दुःख को जीवन | सुख दुःख को जीवन | ||
तराजू पे तोला | तराजू पे तोला | ||
पंक्ति 52: | पंक्ति 44: | ||
खड़े हो गए हम| | खड़े हो गए हम| | ||
− | |||
सूरज ना पूछे | सूरज ना पूछे | ||
उगने से पहले | उगने से पहले | ||
पंक्ति 61: | पंक्ति 52: | ||
कड़े हो गए हम | कड़े हो गए हम | ||
बड़े हो गए हम !!!! | बड़े हो गए हम !!!! | ||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
12:03, 3 जून 2022 के समय का अवतरण
ज़रूरी नहीं अब
किसी का समर्थन
बड़े हो गए हम |
औरों की सुनी थी
मन की न मानी
कमी थी,या खूबी
न जानी,पहचानी
विवादों ने घेरा
परे हो गए हम |
अनचीन्हा कोई
भय था, घुटन थी
बड़ी उलझनों की
तीखी चुभन थी
कसौटी पे घिस के
खरे हो गए हम |
थकने लगे थे
निभाते-निभाते
दुविधाएँ मन की
छिपाते छिपाते
बिसराई पतझड़
हरे हो गए हम|
सुख दुःख को जीवन
तराजू पे तोला
कभी तो अडिग थे
कभी धीर डोला
ले संयम की लाठी
खड़े हो गए हम|
सूरज ना पूछे
उगने से पहले
ना रुकतीं हवाएँ
उड़ने से पहले
कड़ी धूप झेली
कड़े हो गए हम
बड़े हो गए हम !!!!