"मेरे दुख/ बबली गुज्जर" के अवतरणों में अंतर
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..बेबसी लेकर ही.. जीता रहूँ | ..बेबसी लेकर ही.. जीता रहूँ | ||
− | न बांध पाऊं कोई मन्नत की | + | न बांध पाऊं कोई मन्नत की गाँठ |
किसी खुदाई दरख़्त के तने से कभी, | किसी खुदाई दरख़्त के तने से कभी, | ||
− | ..उनकी | + | ..उनकी छाँव में बैठकर भी.. तपता रहूँ |
मेरा दुर्भाग्य देखो, | मेरा दुर्भाग्य देखो, | ||
मैंने तुम्हें पाए बगैर ही खो दिया | मैंने तुम्हें पाए बगैर ही खो दिया | ||
− | मरा हुआ दिल लेकर, कैसे अब ज़िंदा | + | मरा हुआ दिल लेकर, कैसे अब ज़िंदा रहूँगा |
कभी सोचना बैठकर, | कभी सोचना बैठकर, | ||
जिन बातों पर, तुम बात करने से भी कतराती हो | जिन बातों पर, तुम बात करने से भी कतराती हो | ||
− | मैं उन बातों को आजीवन, कैसे सहता | + | मैं उन बातों को आजीवन, कैसे सहता रहूँगा. |
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11:03, 4 जून 2022 के समय का अवतरण
मेरे ये दुख,
मुझे विरासत में तो नही मिले थे
ईश्वर ने ही लिख दी थी मेरे हक में
ज़िन्दगी भर की उदासी, बेबसी और खला..
ये अज़ीयत ही मेरी किस्मत थी
किस्मत से कौन लड़ पाया है भला!
मैं ये जानता था,
नहीं मिलेगी इस राह मंजिल
पर तुम्हारे साथ खातिर चलता रहा..
तुम ये जानती थी,
तुम्हारी याद में सिर्फ दिया ही नहीं
मेरा दिल भी साथ जलता रहा..
ये क्या गहन दुख नहीं था,
कि तुम्हें जी भर न देख पाने की,
..बेबसी लेकर ही.. जीता रहूँ
न बांध पाऊं कोई मन्नत की गाँठ
किसी खुदाई दरख़्त के तने से कभी,
..उनकी छाँव में बैठकर भी.. तपता रहूँ
मेरा दुर्भाग्य देखो,
मैंने तुम्हें पाए बगैर ही खो दिया
मरा हुआ दिल लेकर, कैसे अब ज़िंदा रहूँगा
कभी सोचना बैठकर,
जिन बातों पर, तुम बात करने से भी कतराती हो
मैं उन बातों को आजीवन, कैसे सहता रहूँगा.