भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
कसकर गले लगे बालक को, उसकी माँ से
आहिस्ता-आहिस्ता ही किया जाता है अलग
भूख से अधीर नए- नए जन्में बछडे के मुख से
हौले- हौले से ही छुड़ाया जाता है, गाय का थन
मेरे दोस्त!
क्या तुम इतनी भी दुनियादारी नहीं जानते
कि बिछड़कर जाने का भी तो,
....कोई सलीका होता है!
</poem>