भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"विषय ज़रूरी है ये बेहद / सुनील त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatGeetika}}
+
{{KKCatGeet}}
 
<poem>
 
<poem>
 
विषय ज़रूरी है ये बेहद, आज विचार विमर्श का।  
 
विषय ज़रूरी है ये बेहद, आज विचार विमर्श का।  

21:44, 16 जून 2022 के समय का अवतरण

विषय ज़रूरी है ये बेहद, आज विचार विमर्श का।
कैसा हाल बना डाला है, अपने भारतवर्ष का।

लेन देन का भाव ताव है, दाता और सवाली में।
भले राष्ट्र का आटा गीला, होता हो कंगाली में।
आरक्षण का चारा रक्खा, राजनीति की थाली में,
दूध दुह रहे दुहने वाले वोटर पड़े जुगाली में।

ढूंढ रहे सब राजनीति में मार्ग निजी उत्कर्ष का।
कैसा हाल बना————-

कैसे होगी आय दोगुनी, नहीं रास्ते सूझ रहे।
छोटे बड़े किसान पहेली, यह सरकारी बूझ रहे।
सत्ता धारी और विपक्षी, कर दोनों कन्फ्यूझ रहे।
सूखा, बाढ़ बैंक कर्जे से, लगातार सब जूझ रहे।

लील गया नत्थू काका को सूखा पिछले वर्ष का।
कैसा हाल बना————

चढ़ा दिया है गया मुलम्मा जाति धर्म का जनता पर।
जोर बढ़ गया राजनीति में, मजहब की कट्टरता पर।
संख्या बल की चिंता सबको, नहीं ध्यान गुणवत्ता पर।
लगे जुगत में काबिज होने को सबके सब सत्ता पर।

किया देश में पैदा संकट, धर्म जाति संघर्ष का
कैसा हाल बना————