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Kavita Kosh से
और चुपचाप बस्ता लेकर स्कूल निकल जातीं
वे चाँद से न आने की प्राथनाएँ प्रार्थनाएँ करतीं
वे पूरे वक़्त किसी सहेली की तरह सूरज का साथ चाहतीं
उन्हें तारों वाली बाल कविताएँ भद्दी लगतीं