"ढाकबनी / गिरिजाकुमार माथुर" के अवतरणों में अंतर
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लाल पत्थर लाल मिटृटी | लाल पत्थर लाल मिटृटी | ||
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लाल कंकड़ लाल बजरी | लाल कंकड़ लाल बजरी | ||
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लाल फूले ढाक के वन | लाल फूले ढाक के वन | ||
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डाँग गाती फाग कजरी | डाँग गाती फाग कजरी | ||
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सनसनाती साँझ सूनी | सनसनाती साँझ सूनी | ||
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वायु का कंठला खनकता | वायु का कंठला खनकता | ||
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झींगुरों की खंजड़ी पर | झींगुरों की खंजड़ी पर | ||
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झाँझ-सा बीहड़ झनकता | झाँझ-सा बीहड़ झनकता | ||
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कंटकित बेरी करौंदे | कंटकित बेरी करौंदे | ||
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महकते हैं झाब झोरे | महकते हैं झाब झोरे | ||
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सुन्न हैं सागौन वन के | सुन्न हैं सागौन वन के | ||
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कान जैसे पात चौड़े | कान जैसे पात चौड़े | ||
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ढूह, टीेले, टोरियों पर | ढूह, टीेले, टोरियों पर | ||
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धूप-सूखी घास भूरी | धूप-सूखी घास भूरी | ||
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हाड़ टूटे देह कुबड़ी | हाड़ टूटे देह कुबड़ी | ||
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चुप पड़ी है देह बूढ़ी | चुप पड़ी है देह बूढ़ी | ||
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ताड़, तेंदू, नीम, रेंजर | ताड़, तेंदू, नीम, रेंजर | ||
− | चित्र लिखी खजूर | + | |
+ | चित्र लिखी खजूर पाँतें | ||
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छाँह मंदी डाल जिन पर | छाँह मंदी डाल जिन पर | ||
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ऊगती हैं शुक्ल रातें | ऊगती हैं शुक्ल रातें | ||
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बीच सूने में | बीच सूने में | ||
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बनैले ताल का फैला अतल जल | बनैले ताल का फैला अतल जल | ||
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थे कभी आए यहाँ पर | थे कभी आए यहाँ पर | ||
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छोड़ दमयंती दुखी नल | छोड़ दमयंती दुखी नल | ||
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भूख व्याकुल ताल से ले | भूख व्याकुल ताल से ले | ||
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मछलियाँ थीं जो पकाईं | मछलियाँ थीं जो पकाईं | ||
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शाप के कारन जली ही | शाप के कारन जली ही | ||
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वे उछल जल में समाईं | वे उछल जल में समाईं | ||
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है तभी से साँवली | है तभी से साँवली | ||
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सुनसान जंगल की किनारी | सुनसान जंगल की किनारी | ||
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हैं तभी से ताल की | हैं तभी से ताल की | ||
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सब मछलियाँ मनहूस काली | सब मछलियाँ मनहूस काली | ||
− | पूर्व से उठ चाँद | + | |
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+ | पूर्व से उठ चाँद आधा | ||
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स्याह जल में चमचमाता | स्याह जल में चमचमाता | ||
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बनचमेली की जड़ों से | बनचमेली की जड़ों से | ||
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नाग कसकर लिपट जाता | नाग कसकर लिपट जाता | ||
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कोस भर तक केवड़े का | कोस भर तक केवड़े का | ||
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है गसा गुंजान जंगल | है गसा गुंजान जंगल | ||
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उन कटीली झाड़ियों में | उन कटीली झाड़ियों में | ||
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उलझ जाता चाँद चंचल | उलझ जाता चाँद चंचल | ||
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चाँदनी की रैन चिड़िया | चाँदनी की रैन चिड़िया | ||
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गंध कलियों पर उतरती | गंध कलियों पर उतरती | ||
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मूँद लेती नैन गोरे | मूँद लेती नैन गोरे | ||
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पाँख धीरे बंद करती | पाँख धीरे बंद करती | ||
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गंध घोड़े पर चढ़ीं | गंध घोड़े पर चढ़ीं | ||
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दुलकी चली आतीं हवाएँ | दुलकी चली आतीं हवाएँ | ||
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टाप हल्के पड़ें जल में | टाप हल्के पड़ें जल में | ||
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गोल लहरें उछल आएँ | गोल लहरें उछल आएँ | ||
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सो रहा बन ढूह सोते | सो रहा बन ढूह सोते | ||
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ताल सोता तीर सोते | ताल सोता तीर सोते | ||
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प्रेतवाले पेड़ सोते | प्रेतवाले पेड़ सोते | ||
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सात तल के नीर सोते | सात तल के नीर सोते | ||
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ऊँघती है रूँद | ऊँघती है रूँद | ||
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करवट ले रही है घास ऊँची | करवट ले रही है घास ऊँची | ||
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मौन दम साधे पड़ी है | मौन दम साधे पड़ी है | ||
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टोरियों की रास ऊँची | टोरियों की रास ऊँची | ||
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साँस लेता है बियाबाँ | साँस लेता है बियाबाँ | ||
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डोल जातीं सुन्न छाँहें | डोल जातीं सुन्न छाँहें | ||
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हर तरफ गुपचुप खड़ी हैं | हर तरफ गुपचुप खड़ी हैं | ||
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जनपदों की आत्माएँ | जनपदों की आत्माएँ | ||
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ताल की है पार ऊँची | ताल की है पार ऊँची | ||
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उतर गलियारा गया है | उतर गलियारा गया है | ||
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नीम, कंजी, इमलियों में | नीम, कंजी, इमलियों में | ||
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निकल बंजारा गया है | निकल बंजारा गया है | ||
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बीच पेड़ों की कटन में | बीच पेड़ों की कटन में | ||
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हैं पड़े दो चार छप्पर | हैं पड़े दो चार छप्पर | ||
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हाँडियाँ, मचिया, कठौते | हाँडियाँ, मचिया, कठौते | ||
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लट्ठ, गूदड़, बैल, बक्खर | लट्ठ, गूदड़, बैल, बक्खर | ||
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राख, गोबर, चरी, औंगन | राख, गोबर, चरी, औंगन | ||
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लेज, रस्सी, हल, कुल्हाड़ी | लेज, रस्सी, हल, कुल्हाड़ी | ||
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सूत की मोटी फतोही | सूत की मोटी फतोही | ||
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चका, हँसिया और गाड़ी | चका, हँसिया और गाड़ी | ||
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धुआँ कंडों का सुलगता | धुआँ कंडों का सुलगता | ||
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भौंकता कुत्ता शिकार | भौंकता कुत्ता शिकार | ||
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है यहाँ की जिंदगी पर | है यहाँ की जिंदगी पर | ||
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शाप नल का स्याह भारी | शाप नल का स्याह भारी | ||
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भूख की मनहूस छाया | भूख की मनहूस छाया | ||
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जब कि भोजन सामने हो | जब कि भोजन सामने हो | ||
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आदमी हो ठीकरे-सा | आदमी हो ठीकरे-सा | ||
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जबकि साधन सामने हो | जबकि साधन सामने हो | ||
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धन वनस्पति भरे जंगल | धन वनस्पति भरे जंगल | ||
− | और यह जीवन | + | |
+ | और यह जीवन भिखारी | ||
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शाप नल का घूमता है | शाप नल का घूमता है | ||
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भोथरे हैं हल-कुल्हाड़ी | भोथरे हैं हल-कुल्हाड़ी | ||
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हल कि जिसकी नोक से | हल कि जिसकी नोक से | ||
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बेजान मिट्टी झूम उठती | बेजान मिट्टी झूम उठती | ||
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सभ्यता का चाँद खिलता | सभ्यता का चाँद खिलता | ||
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जंगलों की रात मिटती | जंगलों की रात मिटती | ||
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+ | |||
आइनों से गाँव होते | आइनों से गाँव होते | ||
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घर न रहते धूल कूड़ा | घर न रहते धूल कूड़ा | ||
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जम न जाता ज़िंदगी पर | जम न जाता ज़िंदगी पर | ||
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युगों का इतिहास-घूरा | युगों का इतिहास-घूरा | ||
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मृत्यु-सा सुनसान बनकर | मृत्यु-सा सुनसान बनकर | ||
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जो बनैला प्रेत फिरता | जो बनैला प्रेत फिरता | ||
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खाद बन जीवन फसल की | खाद बन जीवन फसल की | ||
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लोक मंगल रूप धरता | लोक मंगल रूप धरता | ||
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रंग मिट्टी का बदलता | रंग मिट्टी का बदलता | ||
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नीर का सब पाप धुलता | नीर का सब पाप धुलता | ||
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हरे होते पीत ऊसर | हरे होते पीत ऊसर | ||
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स्वस्थ हो जाती मनुजता | स्वस्थ हो जाती मनुजता | ||
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लाल पत्थर, लाल मिट्टी | लाल पत्थर, लाल मिट्टी | ||
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लाल कंकड़, लाल बजरी | लाल कंकड़, लाल बजरी | ||
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फिर खिलेंगे झाक के वन | फिर खिलेंगे झाक के वन | ||
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फिर उठेगी फाग कजरी। | फिर उठेगी फाग कजरी। |
01:21, 8 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
लाल पत्थर लाल मिटृटी
लाल कंकड़ लाल बजरी
लाल फूले ढाक के वन
डाँग गाती फाग कजरी
सनसनाती साँझ सूनी
वायु का कंठला खनकता
झींगुरों की खंजड़ी पर
झाँझ-सा बीहड़ झनकता
कंटकित बेरी करौंदे
महकते हैं झाब झोरे
सुन्न हैं सागौन वन के
कान जैसे पात चौड़े
ढूह, टीेले, टोरियों पर
धूप-सूखी घास भूरी
हाड़ टूटे देह कुबड़ी
चुप पड़ी है देह बूढ़ी
ताड़, तेंदू, नीम, रेंजर
चित्र लिखी खजूर पाँतें
छाँह मंदी डाल जिन पर
ऊगती हैं शुक्ल रातें
बीच सूने में
बनैले ताल का फैला अतल जल
थे कभी आए यहाँ पर
छोड़ दमयंती दुखी नल
भूख व्याकुल ताल से ले
मछलियाँ थीं जो पकाईं
शाप के कारन जली ही
वे उछल जल में समाईं
है तभी से साँवली
सुनसान जंगल की किनारी
हैं तभी से ताल की
सब मछलियाँ मनहूस काली
पूर्व से उठ चाँद आधा
स्याह जल में चमचमाता
बनचमेली की जड़ों से
नाग कसकर लिपट जाता
कोस भर तक केवड़े का
है गसा गुंजान जंगल
उन कटीली झाड़ियों में
उलझ जाता चाँद चंचल
चाँदनी की रैन चिड़िया
गंध कलियों पर उतरती
मूँद लेती नैन गोरे
पाँख धीरे बंद करती
गंध घोड़े पर चढ़ीं
दुलकी चली आतीं हवाएँ
टाप हल्के पड़ें जल में
गोल लहरें उछल आएँ
सो रहा बन ढूह सोते
ताल सोता तीर सोते
प्रेतवाले पेड़ सोते
सात तल के नीर सोते
ऊँघती है रूँद
करवट ले रही है घास ऊँची
मौन दम साधे पड़ी है
टोरियों की रास ऊँची
साँस लेता है बियाबाँ
डोल जातीं सुन्न छाँहें
हर तरफ गुपचुप खड़ी हैं
जनपदों की आत्माएँ
ताल की है पार ऊँची
उतर गलियारा गया है
नीम, कंजी, इमलियों में
निकल बंजारा गया है
बीच पेड़ों की कटन में
हैं पड़े दो चार छप्पर
हाँडियाँ, मचिया, कठौते
लट्ठ, गूदड़, बैल, बक्खर
राख, गोबर, चरी, औंगन
लेज, रस्सी, हल, कुल्हाड़ी
सूत की मोटी फतोही
चका, हँसिया और गाड़ी
धुआँ कंडों का सुलगता
भौंकता कुत्ता शिकार
है यहाँ की जिंदगी पर
शाप नल का स्याह भारी
भूख की मनहूस छाया
जब कि भोजन सामने हो
आदमी हो ठीकरे-सा
जबकि साधन सामने हो
धन वनस्पति भरे जंगल
और यह जीवन भिखारी
शाप नल का घूमता है
भोथरे हैं हल-कुल्हाड़ी
हल कि जिसकी नोक से
बेजान मिट्टी झूम उठती
सभ्यता का चाँद खिलता
जंगलों की रात मिटती
आइनों से गाँव होते
घर न रहते धूल कूड़ा
जम न जाता ज़िंदगी पर
युगों का इतिहास-घूरा
मृत्यु-सा सुनसान बनकर
जो बनैला प्रेत फिरता
खाद बन जीवन फसल की
लोक मंगल रूप धरता
रंग मिट्टी का बदलता
नीर का सब पाप धुलता
हरे होते पीत ऊसर
स्वस्थ हो जाती मनुजता
लाल पत्थर, लाल मिट्टी
लाल कंकड़, लाल बजरी
फिर खिलेंगे झाक के वन
फिर उठेगी फाग कजरी।