भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ओळूं नै अवरेखतां (5) / चंद्रप्रकाश देवल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:08, 17 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
आपरी गुम्योड़ी सुवास री भाळ में
म्हारै नाक रा फोरणा थारै गांव आया है।
जाणता नीं हा जद अै के बास रै सुंकारो कद लागै। अर कद बदकारो लागै। थारा सांस सेंमूदी बायरी में वभरोळ घोळता हा आपरी हूंस रै पांण। नीं जाणता साफ-साफकै किसी बायारी में भेळणौ है आपरौ आपांण। आ व्ही जांणै बोलविहूणी बतळावण। आंख बायरौ सुपनौ। इण आपाधापी मे कद, कुण, कठै खपणौ। पण -
जाणूं तो बस औ इत्तौ इज जांणूं कै
म्हारै नांव रा आखर थारै नांव समाया है