भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ब्यूनस आयरस / होर्खे लुइस बोर्खेस / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
तू दिल में बसी, मेरी क़िस्मत, मन में छुपी हुई है,
 
तू दिल में बसी, मेरी क़िस्मत, मन में छुपी हुई है,
 
मेरे विदा होने से पहले तू मेरे भीतर रुकी हुई है।  
 
मेरे विदा होने से पहले तू मेरे भीतर रुकी हुई है।  
 +
 +
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
 
</poem>
 
</poem>

19:00, 11 अगस्त 2022 के समय का अवतरण

कभी मैं तुम्हें ढूँढ़ रहा था बेहद, ओ मेरी खुशी !
वहाँ, खेतों और मैदानों पर जहाँ उतरती है शाम,
जहाँ खड़े हैं सर्द देवदार और लहराती है जुही
उस लौहबाड़ के पार बाग़ में सोए हुए सरेआम ।

तू पलेर्मो में थी, गहरे अन्धविश्वास फैले हैं जहाँ,
चाकू की धार और ताश की गड्डियों के थे वे दिन ।
और झलक रही थी फीकी सी चमक सुनहरी वहाँ,
दरवाज़े के पास पड़े हथौड़े के हत्थे पर उस छिन ।

तेरी अँगूठी वाली उँगली की छाया छलक रही थी’
वह अहाते में पड़ी थी, दक्षिण की ओर झुकी हुई ।
टहल रही थी छाया घनी वृत्ताकार पुलक रही थी,
सूर्यास्त का समय था, मन में गहरी धुकधुकी हुई ।

तू दिल में बसी, मेरी क़िस्मत, मन में छुपी हुई है,
मेरे विदा होने से पहले तू मेरे भीतर रुकी हुई है।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय