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"ना दिल से आह ना लब सदा निकलती है / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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ना दिल से आह ना लब सदा निकलती है
मगर ये बात बड़ी दूर जा निकलती है
सितम तो ये है अहदे सितम के जाते ही
तमाम खल्क मेरी हमनवां निकलती है
विसाले बहर की हसरत में ज़ूए कम कममायः
कभी कभी किसी सहरा में जा निकलती है
मैं क्या करूं मेरे कातिल ना चाहने पर भी
तेरे लिये मेरे दिल से दुआ निकलती है
वो ज़िन्दगी हो कि दुनिया "फ़राज़" क्या कीजे
कि जिससे इश्क करो बेवफ़ा निकलती है