भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम-तुम / शशिप्रकाश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिप्रकाश |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:35, 28 अगस्त 2022 के समय का अवतरण

कम से कम
कल्पना तो कर ही सकते हैं
कभी-कभी किशोर-वय प्रेमियों की तरह —

कि कभी हम-तुम होंगे
सुदूर वन-प्रान्तर के
निर्भीक हिरनों की तरह I

कि हम-तुम कभी होंगे
साथ-साथ उगते-छिपते
दो तारों की तरह I

कि हम-तुम होंगे
एक ही दिल के दो हिस्से I

हमारा प्यार
एक ईमानदार आदमी के
पसीने की तरह होगा,
मासूम होगा उसकी पत्नी के
सपनों की तरह,

सदियों के सताए गए लोगों के
विद्रोह सा उद्दाम होगा
उसका आवेग I

और, कितना सुन्दर होगा
वह जीवन
तमाम कठिनाइयों के बीच
एक स्वाभिमान छोड़कर
सबकुछ खोने के बाद !

आओ, कुछ ऐसी कल्पनाएँ करें
क्योंकि जीवन के हर नए यथार्थ के
निर्माण के पीछे कल्पना की
भूमिका होती है और

बीहड़ कठिनाइयों से गुज़रने के बाद ही
एक नया सौन्दर्यानुभव
हासिल होता है I