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"भक्ति और अतिभक्ति / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सुलोचना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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भक्ति है आती रिक्तहस्त प्रसन्नवदन
अतिभक्ति कहे, देखूँ कितना मिलता है धन
भक्ति कहे, मन में है, नहीं दिखाने की औक़ात
अतिभक्ति कहे, मुझे तो मिलता हाथोंहाथ ।

मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा