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"कब से तुम गा रहे! / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर
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कब से तुम गा रहे, कब से तुम गा रहे | कब से तुम गा रहे, कब से तुम गा रहे | ||
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जाल धर आए हो नाव में | जाल धर आए हो नाव में | ||
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कब से तुम गा रहे | कब से तुम गा रहे | ||
कब से हम गा रहे, कब से हम गा रहे | कब से हम गा रहे, कब से हम गा रहे | ||
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− | घनी-घनी पाँत है | + | घनी-घनी पाँत है खजूर की |
राह में हुजूर की | राह में हुजूर की | ||
तानें खींच लाईं मुझे दूर की | तानें खींच लाईं मुझे दूर की | ||
वंशी नहीं दिल ही गला कर | वंशी नहीं दिल ही गला कर | ||
तेरी गली में हम बहा रहे | तेरी गली में हम बहा रहे | ||
− | कब से हम गा रहे! | + | कब से हम गा रहे ! |
सूनी तलैया की ओट में | सूनी तलैया की ओट में | ||
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जामुन-सी काली इन भौंह की छाँह में | जामुन-सी काली इन भौंह की छाँह में | ||
डूबे हम जा रहे, | डूबे हम जा रहे, | ||
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23:11, 7 सितम्बर 2022 का अवतरण
कब से तुम गा रहे, कब से तुम गा रहे
कब से तुम गा रहे !
जाल धर आए हो नाव में
मछुओं के गाँव में
मेरी गली साँकरी की छाँव में
वंशी बजा रहे, कि
कब से तुम गा रहे
कब से हम गा रहे, कब से हम गा रहे
कब से हम गा रहे !
घनी-घनी पाँत है खजूर की
राह में हुजूर की
तानें खींच लाईं मुझे दूर की
वंशी नहीं दिल ही गला कर
तेरी गली में हम बहा रहे
कब से हम गा रहे !
सूनी तलैया की ओट में
डुबो दिया चोट ने
तीर लगे घायल कुरंग-सा
मन लगा लोटने
जामुन-सी काली इन भौंह की छाँह में
डूबे हम जा रहे,
कब से हम गा रहे !